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________________ मर-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अन्त में एक दोहा भी दिया गया है, उससे इनकी पद्य रचना का नमूना प्राप्त हो जायेगा चौदह गुणस्थान कथन भाषा सुनि सुख होइ। अखैराज श्रीमाल ने करी जथामति जोइ ।' इनकी गद्य और पद्य की भाषा ब्रजमिश्रित राजस्थानी है। ब्रजभाषा का यह प्रभाव भक्ति आन्दोलन के परिणामस्वरूप भी हो सकता है किन्तु राजस्थान में पहले से ही पद्य में पिंगल की जिस काव्य शैली का प्रयोग प्रचलित था उसमें राजस्थानी और ब्रजभाषा का रूप मिला जुला था, विशेषतया ढूढ़ाड़ क्षेत्र की विभाषा ढूढ़ाड़ी पर ब्रज-भाषा का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है । श्रीमाल गोत्रीय होने के कारण इन्हें श्वेताम्बर परम्परा का विद्वान् होना चाहिये किन्तु इन्होंने जो भाषा-टीकायें की हैं वे मुख्यतः दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों पर ही हैं। ऐसा लगता है कि बनारसीदास के साथ ओसवाल जाति के जो व्यक्ति दिगम्बर सम्प्रदाय के प्रति आकृष्ट हुए, उनमें इनका परिवार भी रहा होगा। अजित ब्रह्म-आप गोल शृंगार जाति के श्रावक कुल में उत्पन्न हए थे। आप के पिता का नाम वीर सिंह और माता का नाम पीथा था। 'भट्टारक सम्प्रदाय, नामक ग्रन्थ में लिखा है "गोल शृगार वंशे नभसि दिनमणि वीरसिंहो विपश्चित । भार्या पीथा प्रतीता तनुरुह विदितो ब्रह्म दीक्षाश्रितोऽभूत ।" आपका लेखनकाल १७वीं शताब्दी का तृतीय चरण माना जाता है। आप ब्रह्मचारी थे और दिगम्बर भट्टारक श्री सुरेन्द्रकीति के प्रशिष्य तथा विद्यानन्दी के शिष्य ये। भट्टारक विद्यानन्दी बलात्कार. गण सूरतशाखा के भट्टारक थे। ब्रह्म अजित भृगुकच्छ (भडौंच) के नेमिनाथ चैत्यालय में मुख्यरूप से निवास करते थे। आपने इसी चैत्यालय में अपनी प्रसिद्ध रचना 'हनुमच्चरित' का प्रणयन बारह सर्गों में किया था। यह अपने समय की लोकप्रिय रचना थी। __ आपकी दूसरी काव्यकृति का नाम 'हंसागीत' या हंसाभावना या हंसातिलक रास है । यह ३७ पद्यों का एक लघु काव्य है । यह आध्या१. राजस्थान के जैनशास्त्र भंडारों की ग्रन्थ सूची पंचम भाग पृ० १९, सं० डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल एवं अनूपचंद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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