________________
समय प्रमोद
लिखी। इनकी एक अन्य रचना 'पार्श्वनाथ फाग' भी उपलब्ध है।' श्री देसाई ने इनकी एक ही कृति 'सीतासती' का उल्लेख किया है किन्तु इसका अन्य विवरण या उद्धरण नहीं दिया है ।
समयविधान - आप खरतरगच्छीय जयकीति के प्रशिष्य एवं राजसोम के शिष्य थे। इनकी 'वीशी' जौर अन्य स्फुट रचनाओं का नामोल्लेख मात्र श्री अगरचन्द नाहटा ने किया है ।
समयप्रमोद - खरतरगच्छीय आचार्य जिनचन्द्रसूरि के शिष्य ज्ञानविलास आपके गुरु थे, आप गद्य और पद्य दोनों विधाओं के अच्छे लेखक थे। सं० १६४९ से सं० १६७३ तक आपका रचनाकाल माना जाता है। इस अवधि में आपने निम्नलिखित रचनायें मरुगुर्जर पद्य और गद्य में की हैं। आरामशोभा चौपइ सं० १६५१, बीकानेर, गाथा २७०; अधनकरास सं० १६५७ विसाला; दशार्णभद्र नवढालिया, गाथा ९३, सं० १६६० नयानगर; कइवन्ना चौपइ १६६२ सेत्रावा, नेमिराजीमतीरास १६६३ सेत्रावा गाथा ९७, जिनचन्द्रसरि निर्वाणरास सं० १६७० (प्रकाशित ऐ० जै० का० संग्रह), चौपरवी चौपइ, गाथा ५२९ सं० १६७३ झूठागांव और गद्य में 'साधरमीकुलकटब्बा सं० १६६१ वीरमपुर ।
इनकी कुछ रचनाओं का विवरण-उद्धरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है। आरामशोभा चौपई २७० कड़ी, सं० १६५१ का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है -
सयल सुखाकर पास जिणंद, पणमीय तासु चरण अरविंद, जसु सुमिरणि धरि नवय निहाण, मोह तिमिर भरभाण समाण ।
१. अगरचन्द नाहटा-- परपरा पृ० ८७ और जैन गुर्जर कविओ भाग ३ ___ पृ० ६६५ (प्रथम संस्करण) तथा भाग २ पृ० ४८ (द्वितीय संस्करण) २. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ७९ ३. वही, पृ० ८१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org