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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २७७ पर 'साधुवंदना' और 'साधु कल्पलता' नामक दो कृतियों का अलग-अलग उल्लेख किया था किन्तु भाग ३ पृष्ठ ७७१ पर इन दोनों को एक ही कृति के दो नाम बताकर परिमार्जन कर दिया। इस प्रकार आपने भिन्न-भिन्न ढालों, रागरागनियों और काव्य विधाओं जैसे रास, पूजा, संज्झाय, स्तवन, हमचडी, सुरबेली, स्वाध्याय आदि में अनेक रचनायें मरुगुर्जर और संस्कृत में लिखकर साहित्य की बड़ी सेवा की है। ये उच्चकोटि के सन्त, कवि, विद्वान, आचार्य और गायक थे।
भट्टारक सकल भूषण--आप दि० भट्टारक शुभचन्द्र के शिष्य और सुमतिकीति के गुरुभाई थे। आपने सं० १६२७ में 'उपदेशरत्नमाला' नामक ग्रन्थ की रचना संस्कृत में की। पाण्डवपुराण एवं करकंडुचरिय की रचना में इन्होंने भ० शुभचन्द्र को पूर्ण सहयोग दिया था। भ० शुभचन्द्र ने उक्त ग्रंथों में इस तथ्य का स्वयं उल्लेख किया है। आमेर शास्त्र भंडार, जयपुर से प्राप्त एक गुटके में इनकी दो लघ रचनायें 'सदर्शन गीत' और 'नारी गीत' उपलब्ध हुई हैं। सदर्शन गीत में सेठ सदर्शन के आदर्श शीलचरित्र का चित्रण किया गया है। 'नारी गीत' में चेतन को यह परामर्श दिया गया है कि संसार में जीव को नारी मोह में नहीं फंसना चाहिए। इनकी भाषा पर गुजराती का प्रभाव अधिक है। रचनायें सामान्य स्तर की हैं। डा० कस्तूरचंद कासलीवाल ने इनका परिचय देते हुए लिखा है कि ये रचनायें पहली बार हिन्दी जगत् के सामने आ रही हैं किन्तु किसी रचना से एक भी पंक्ति का उद्धरण नहीं दिया। इसलिए मैं भी डा० हरीश की तरह केवल उनके कथन को ही उद्धृत करके विराम ले रहा हूँ।'
समयध्वज -आप खरतरगच्छ की श्री जिनप्रभसूरि शाखान्तर्गत सागरतिलक के शिष्य थे। इन्होंने सीतासती चौपइ सं० १६११ में
१. डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन संत पृ० २०६ और
डा० हरिप्रसाद गजानन शुक्ल हरीश-जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी साहित्य को देन पृ० १०१
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