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________________ सकलचन्द बार भावना संज्झाय--यह 'शलोका संग्रह' और संज्झाय पद संग्रह तथा जैनसंज्झाय संग्रह में प्रकाशित है। 'वीर वर्द्धमान जिनदेशी अथवा हमचडी अथवा सुरलता अथवा जन्मादि अभिषेक कल्याणक पाँच वर्णन रूपी स्तव (६६ कड़ी) यह जैनसत्यप्रकाश, पुस्तक ९ अङ्क १० पृ० ४४१-४५ पर प्रकाशित है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं नंदनकु तिसला हुल रावई, पूतइ मोह्या इन्दा रे, तुझ गुण लाडेकडाना गावति, सुरनरनारिना वृन्दा रे ।' गणधरवास स्तवन ४८ कड़ी, साधु कल्पा अथवा साधु वंदना मुनिवर सुरवेली (१४४ कड़ी) और हीरविजय देशना सुरवेलि (११५ कड़ी आदि नवीन काव्य विधाओं में प्रस्तूत रचनायें हैं। इसी प्रकार अनेक स्तवन, स्वाध्याय आदि भी आपने लिखा है। महावीर हीच (हीडी) स्तवन (४६ कड़ी) का मंगलाचरण संस्कृत भाषा में लिखा है, यथा-- आसीन्मथो यस्य रसे प्रशांते यस्यानुलक्षा क्षांतिरभूदुपांते, सुवर्ण कांते कृतसंगवांते, नमोऽस्तु ते वीरविभो निशांते । 'ऋषभ समता सरलता स्तवन' ३१ कड़ी, विरजिनस्तवन अथवा गौतमदीपालिका स्तव (७६ कड़ी), कुमतदोषविज्ञप्तिका श्रीसीमंधर स्तव, नेमिस्तवन और अन्य बीसों स्तवन आपने लिखे हैं। इनमें से कई स्तवन स्तवन संज्झायसंग्रहों' में प्रकाशित हैं। वैरस्वामीसंज्झाय, हीरविजय सूरि संज्झाय, मेघकुमार संज्झाय आदि अनेक संज्झाय भी आपने लिखे । इन सभी छोटी-बड़ी रचनाओं का विवरण एवं उद्धरण देना सम्भव नहीं है। नमने के रूप में गौतम पच्छा के आदि और अन्त की पंक्तियाँ देकर यह विवरण समाप्त किया जा रहा है । आदि--जिनवर रूप देखी मन हरखी, स्तन में दध कराया, तब मन गौतम हुआ अचम्भा, प्रश्न करणकु आया ! गणधर ओ तो मेरी अम्मा। अंत-श्री तपगच्छनायक हीरविजय सूरीश्वरदीइ मनोहरवाणी, सकलचंद प्रभु गौतम पूछई, ऊलट मनमा आणी-गणधर । १. जैन गुर्जर कविओ पृ० १९७-२०९ तक २. वहीं, भाग १ पृ० २७५ और भाग ३ पृ० ७६८ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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