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________________ ५०४ अन्त मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आदि के रूप में लिखा है आपने संस्कृत में प्रतिष्ठाकल्प की रचना की है। आपकी कुछ प्रसिद्ध रचनाओं का विवरण-उद्धरण प्रस्तुत किया जा रहा है। मृगावती आख्यान अथवा रास (४२१ कड़ी) आदि सिधारथ नरपति कुलि अषाढ़ि सुदि छठि, आयु सुपिनां देषाइतु, तब तिसला हुइ तूठि । चेडक महारायनी पुत्री शांतिशील-पवित्री जी, सकलचंद मुनि भासइ समरु मृगावती सपवित्रीजी। मृगावती सुसती आख्यानं, शील रखोपा कीजे जी, सती सवे नितु सुणयो भणयो हीरविजइ गुरुराजइजी।' वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाशरास (अथवा स्तवन) ६१ ढाल ४५६ कड़ी, खंभात आदि-ऋषभ अजित संभव जिनो, अभिनन्दन सुमतीसो, पद्मप्रभ सुपासो बीहा, चन्दप्रभ सुविधीशो । अन्त में गुरुपरम्परान्तर्गत कवि ने लिखा है श्री मदानन्दविमलेन्दु गुरुवंदीइ, पटितस श्री विजयदानसूरो, तास पति प्रशोनी कूपलोवंदीइ, हीरविजयगुरु सुगुणिपूरो। सत्तरभेदी पूजा -यह विविध पूजा संग्रह तथा अन्य पूजा संग्रहों में प्रकाशित है । इसमें कवि ने विजयदान को गुरु बताया है, यथा--- श्री तपगच्छ अम्बरि दिनकर सरिखो, विजयदान गुरु मुणियो, जिन गुरु संघ भगति करी पसरी, कुमतितिमिरसब हणियो । इणीपरि सत्तरिभेद पूजाविधि, श्रावक कुं जिन भणियो, सकल मुनीसर काउसग्ग ध्याने चिंतवि सबफल चुणियो रे । एक बीस प्रकारी पूजा - विविध पूजा संग्रह में प्रकाशित है-- श्री तपगच्छे दिनकर शोभे, विजयदान गुरु गुणियो, श्री हीरविजय प्रभव्याने ध्यातां, हेमहीरो जेम जडियोरे, प्रभु । १ जैन गुर्जर कविश्रो भाग २ पृ० १९८ (द्वितीय संस्करण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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