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सकलचन्द
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और ५ पर ये दोनों गीत संग्रहीत हैं । ५वें गीत की एक पंक्ति देखिये
श्री सुन्दर प्रभु चिरजयउ दिन-दिन चढ़तइ बान ।' क्षुल्लककुमाररास का उद्धरण एवं विवरण नहीं उपलब्ध हो सका।
श्रीहर्ष-आप ज्ञानपद्म के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७०० में 'कर्मग्रन्थ बालावबोधर नामक गद्य रचना श्री ज्ञानरत्न के समय में की आपकी गद्य रचना का नमूना नहीं प्राप्त हुआ।
श्रतसागर --आप धर्मसागर उपाध्याय के शिष्य थे। आपने सं० १६७० में 'ऋषि मंडल बालावबोध की रचना की । आपने रचनाकाल इस प्रकार बताया है___ व्योमर्षि रस शीतांशु वत्स रे । गद्यशैली का नमूना उपलब्ध नहीं है।
सकलचन्द -आप तपागच्छ के प्रसिद्ध आचार्य हीरविजयसूरि के शिष्य थे। कहीं कहीं इन्हें विजयदानसूरि का शिष्य भी बताया गया है। लगता है कि एक दीक्षा-गुरु और दूसरे विद्या-गुरु रहे होगे। इनके कई शिष्य-प्रशिष्य भी अच्छे लेखक और सन्त हो गये हैं। इनकी मृगावती आख्यान, वासुपूज्यजिन पूण्यप्रकाश रास, सत्तरभेदीपूजा, अक बीस प्रकारी पूजा, बारभावना संज्झाय, गौतमपृच्छा, नेमिस्तवन, सीमंधरेर स्तवन, वैरस्वामी संज्झाय, मेघकुमार संज्झाय आदि अनेक रचनायें उपलब्ध हैं। आप मरुगर्जर के साथ संस्कृत, प्राकृत के प्रगाढ़ पण्डित थे। आपने मरुगर्जर रचनाओं के बीच-बीच में सन्त तुलसीदास की तरह संस्कृत में बड़े सुन्दर श्लोक मंगलाचरण १. ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह 'जिनचंद सूरि गीतानि' २रा और ५वाँ गीत २ जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० ३४१ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३
खंड २ १० १६१३ (प्रथम संस्करण) ३ वही भाग ३ पृ० १५९ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३ खंड २
पृ० १६०३ प्रथम संस्करण)
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