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________________ श्रीसार ५०१ सुन्दर रूप सोहामणो आदीसर अरिहंत, परता पूरण प्रणमीय त्रयभंजण भगवंत । अन्त- कपासीओ मोती इणि परि मल्या सयण तणे संबंध, संवत सोल निव्यासीइ, कीधो अह प्रबंध । 'सारबावनी' (कवित्त बावनी ५७ कड़ी, सं० १६८९ आशो शुदी १०, पाली) ककहरा क्रम में ५२ अक्षरों से प्रारम्भ करके ५२ छन्द लिखे गये हैं। इसमें भगवान और उनकी भक्ति का गुणानुवाद है। इसकी अन्तिम चार पंक्तियाँ निम्नाङ्कित हैं क्षितिमंडल क्षितितिलक सहर पालीपुर सोहइ, गढ़मढ़ मन्दिर पडल बागवाडी मनमोहइ । राज करै जगनाथ सूर सामंत सवायो, सोनिगिरइ सुसमत्थ सुजस वसुधा बर्तायो। संवत सोल निव्यासीयइ आसू सुदि दशमी दिनइ, श्री सार कवित्त बावन कह्या, सांभलिज्यो सांचइ मनइ ।' उपदेश सत्तरी अथवा जीव उत्पत्तिनी संज्झाय अथवा तंदुलवेयालीसूत्र संज्झाय, अथवा गर्भावास संज्झाय अथवा वैराग्य संज्झाय । यह रचना अभयरत्नसार संग्रह और अन्य कई संकलनों में उपरोक्त नामों से छपी है। आदि - उत्पत्ति जोगो आपणीमन मांहि विमास, गर्भावसि जीवडो वसियो नव मास । दश श्रावक गीत या संज्झाय १४ कड़ी की लघु रचना है-- फलोधी पार्श्वनाथस्तवन - जैन सत्य प्रकाश में प्रकाशित है। आदिनाथस्त०, वासुपूज्य रोहिणीस्त०, गौतमपृच्छानुस्त०, जिनप्रतिमा स्थापनस्तव आदि भक्तिपरक पूजा पाठ सम्बन्धी लघकृतियाँ हैं। आत्मबोध गीत-७ कड़ी की चेतावनी है। इसकी अन्तिम दो पंक्तियाँ देखिये पासि रतन के जतन न कीने, पर्यओ पतन मइ प्रांणी हो, सुकृत संयोग सुगुरु की वाणी अब श्रीसार पिछांणी हो । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २१७-२१८ (द्वितीय संस्करण) २. वही भाग ३ पृ० ३७९ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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