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________________ ४९८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ___ जैन गुर्जर कविओ के द्वितीय संस्करण के सम्पादक ने इसी आधार से इनकी गुरुपरंपरा पर शंका उठाई है और बताया है कि इनके गुरु कल्याणविजय नहीं हीरविजय सूरि थे। श्री देसाई ने 'पाँच बोलनो मिच्छामी दोकडो बालावबोध' (सं० १६५६ के पश्चात्) नामक गद्य रचना को किसी अज्ञात लेखक की कृति बताया था।' किन्तु द्वितीय संस्करण के सम्पादक ने इसे इन्हीं शुभविजय की रचना माना है क्योंकि इसके अन्त में स्पष्ट लिखा है- 'इति भट्टारक श्री हीरविजय सूरीश्वर दायितोपाध्याय श्री धर्मसागर गणि दत्त पंचजल्प मिथ्यादुष्कृतपट्टकस्यायं बालावबोधः भट्टारक श्री विजयदेवसूरींद्र निर्देशात् भट्टारक श्री हीरविजयसूरि शिष्य पंडित श्री शुभविजयगणिना विहितः .' इससे स्पष्ट इस रचना के कर्ता हीरविजयसूरि शिष्य शुभविजय प्रमाणित होते हैं। अतः वे न केवल अच्छे पद्यकार अपितु गद्यलेखक भी थे। उनकी गद्यशैली के नमूने के रूप में दो चार पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-'पातसाहि श्री अकबर प्रतिबोधदायक भट्टारक सहस्रनेत्र भट्टारक श्री हीरविजय सूरीन्द्र पट्टविभूषण भट्टारक श्री विजयसेन सूरीश्वर पट्टोदय शिखरि शिखर सहस्र वसु समान सम्प्रति विजयमान भट्रारक श्री विजयदेव सूरीश गुरुभ्यो नमः' । उद्धरणों से ऐसा लगता है कि कवि ने विजयदेव सूरि के समय रचना की। वह हीरविजय को भौर विजयदेव सूरि को भी गुरु रूप में स्मरण करता है। श्रवण-(सरवण) आप पार्श्वचन्द्र के शिष्य थे । आपने सं० १६५७ पौष शुक्ल ५ को पाटण में 'ऋषिदत्ता रास' लिखा । ३ श्रीधर--(जनेतर) आपने सं० १६६५ में 'रावण-मंदोदरी संवाद' की रचना की। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १६१६-१७ (प्रथम संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० २३२ (द्वितीय संस्करण) ३. वही, भाग ३ पृ० ८७८ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० ३०३ (द्वितीय संस्करण) ४. वही, भाग १, पृ० ४६६ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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