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________________ ४९३ शाह ठाकुर शाह ठाकुर -- ये लुहाड्या गोत्रीय खण्डेलवाल वैश्य थे। इनके जन्म स्थान लवाइणिपुर में चन्द्रप्रभ का सुन्दर जिनमन्दिर था। इनके गुरु अजमेर शाखा के विद्वान् भट्टारक विशालकीर्ति थे। इनके पितामह का नाम साहु सील्हा ओर पिता का नाम खेता था। ये काव्य, संगीत और छन्द-अलंकार आदि में निपुण थे तथा निरन्तर विद्वानों,, सन्तों और साहित्यकारों का सत्संग करते थे। इनकी अबतक दो कृतियाँ उपलब्ध हैं एक अपभ्रंश शैली में रचित 'संतिणाहचरिउ' (शान्तिनाथ चरित) और दूसरी प्राचीन हिन्दी शैली में लिखित 'महापुराणकलिका' । प्रथम रचना में १६वें तीर्थङ्कर शान्तिनाथ का जीवन चरित्र है। यह रचना सं० १६५२ भाद्रपद शुक्ल पंचमी को अकबर के शासनकाल में ढूढाड़ प्रदेश के कच्छपवंशी राजा मानसिंह के राज्य में लिखी गई। इसकी कुछ पंक्तियां उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं जिण धम्मचक्क सासणि संरति, गयणय लहुजिम ससि सोह दिति । जिण धम्मणाण केवल रवीय, तह अड्ढकम्ममल विलयकीय । एत्तउ मांगउ जिणसंतिणाह महु, किज्जहु दिज्जहु जइ बोहिलाह। दिल्ली से लेकर अजमेर तक प्रतिष्ठित भट्टारक परम्परा का एक ऐतिहासिक दस्तावेज इस रचना की अन्तिम प्रशस्ति में उपलब्ध है। इसकी भाषा अपभ्रंश मिश्रित प्राचीन शैली की है फिर भी तत्कालीन लोक प्रचलित व्रजभाषा से प्रभावित है क्योंकि ढूढाड़ प्रदेश तक व्रजभाषा का पर्याप्त प्रचार हो गया था। खेद है कि इनकी हिन्दी शैली में लिखित दूसरी रचना महापुराणकलिका का उद्धरण नहीं उपलब्ध हो सका, इसलिए इनकी प्रकृत हिन्दी काव्य भाषा-शैली का ठीक नमूना नहीं दिया जा सका। १. पं० परमानंद शास्त्री-- जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह (प्रस्तावना) पृ० १३० २. डा० देवेन्द्रकुमार शास्त्री का अपभ्रश के साहित्यकार नामक लेख राजस्थान का जैन साहित्य पृ० १४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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