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________________ मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तातप चांद्रणि परगडउ, जास महिमाकीरति भरिउ रे, मान प्रेमलदे ऊरिधर्यु, देवकि पाटणिअवतरिउ रे । विनयकुशल पंडितवरु, परउपगारी गुणछरिउ रे, चरण कमल सेवा लही शांति कुशलइ ओ रास करिउ रे । गोड़ी पार्श्वनाथ स्तवन सं० १६६७, यह प्राचीन तीर्थ संज्झाय और गोड़ी पार्श्वनाथ सार्धं शताब्दी स्मारक ग्रन्थ में प्रकाशित है । ४९२ तपगछतिलक तडोवड पाय प्रणमी हो विजयसेन सूरीस, संवत सोल सतसठें वीनवीओ हो गोडी जगदीस । झांझरिया मुनि संज्झाय ( १०२ कड़ी सं० १६७७ वैशाख कृष्ण ११ बुध, स्याणां ) आदि - सरसति कोमल सारदा, वाणी वर द्यो माय, पायठाणपुर पाटण धणी सबल मकरध्वजराय । रचनाकाल - संवत सोल सतोत्तरे, श्याणा नगर मझारि हो, वइशाखवदि ओ फादशी, थुभिउ मि बुधवार हो । भारती स्तोत्र अथवा अजारी सरस्वती या शारदा छंद ३३ कड़ीयह रचना प्राचीन छंद संग्रह में प्रकाशित है । ' आदि अन्त सरस वचन समता मन आणी ऊंकार पहिलो धुरि जांणी, तत्र बोली शारदा जो छंद कीधो, भली भगतें वाचा माहरी, हुं तूही में वर दीधो तूं लीला करिस, आस फलसी ताहरी । यह रचना 'मणिभद्रादिको नाछंदनुं' नामक पुस्तक में भी प्रका है । सनतकुमार संज्झाय की आदि पंक्ति काशित सरसति सामिणि पाओ लागू यह संज्झाय 'जैन संज्झाय संग्रह' में प्रकाशित है । इस प्रकार इनकी प्रायः सभी रचनायें प्रकाशित हैं। अधिकतर रचनायें स्तोत्र, स्तवन, संज्झाय हैं । अन्जनासती रास विस्तृत और महत्वपूर्ण रचना है । भाषा सरल मरुगुर्जर है । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १३४ - १३७ ( द्वितीय संस्करण ) तथा भाग १ पृ० ४७१–७२ और भाग ३ पृ० ९४४ - ४६ ( प्रथम संस्करण ) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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