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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जस पट्ट प्रगट प्रतापी ऊग्यउ श्रीविजयसेन दिवाकरो, कविराज हरषाणंद पंडित विवेकहर्ष सुहंकरो'
विवेकहंस-आपकी एक कृति 'उपासकदशांग बालावबोध' की रचना सं० १६१० से पूर्व हुई थी ऐसी सूचना श्री देसाई ने दी है परन्तु परिचय, उद्धरण आदि नहीं दिया है।
वीरविजय -आपकी कई रचनाओं का नामोल्लेख श्री अगर चन्द नाहटा ने किया है किन्तु कृतियों और कर्ता का कुछ परिचय नहीं दिया है। कृतियों का नाम इस प्रकार है- 'चौबीस जिन सात बोल विचार गभित स्तवन' (गाथा २५) सं० १६४ ? जैसलमेर; शत्रुजय यात्रास्तवन सं० १६५२, सत्तरभेदी पूजा सं० १६५३ राजधन्यपुर और दस दृष्टान्त चौपइ ।
आप खरतरगच्छीय लेखक थे किन्तु आपकी गुरुपरंपरा नहीं ज्ञात हो सकी।
वेलामुनि -आप तपागच्छ के आचार्य विजयदान के शिष्य थे। आपने सं० १६२२ से पूर्व 'नवतत्व जोडि' की रचना की। इसकी किसी-किसी प्रति में लेखक का नाम मनसत या मन मिलता है, जैसे
तपगच्छ नायक श्री गुरुनो श्री विजयदान गणधार रे,
चेलू मनसत आण धरइ तुं कहतूं पर उपगार रे । रचना का नाम 'जोडि' अथवा चौपाई या रास भी मिलता है । विजयदान सूरि का पद-स्थापन सं० १५८७ और स्वर्गवास सं० १६२२ १. ऐतिहासिक जैन गुर्जर काव्य संचय क्रम सं० २१ और जैन गुर्जर कविओ
भाग २ पृ० २७९-२८० (द्वितीय संस्करण) तथा भाग ३ पृ० ८२२
(प्रथम संस्करण) २. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ४५ (द्वितीय संस्करण) भाग ३ पृ०
१५९५ (प्रथम संस्करण) ३. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ७६ और जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ०
२९८ (द्वितीय संस्करण)
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