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________________ ४८६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तास पसाय लही चितचंगइ, विमल विनइं पभणइ मनरंगइ ।' अर्हन्त्रक रास (गाथा ६६, ४ ढाल) आदि वर्द्धमान चउवीसमउ, जिनवंदी जगदीस, अरहन्नक मुनिवर चरित्र, भणिसुं धरीय जगीस । अन्त श्री गुणशेखर गुण निलउ जी, वाचक श्री नयरङ्ग, तासु सीस भावइ भणइ जी विमलविनय मनिरङ्गि। ___ इन दोनों रचनाओं में कवि ने दो मुनियों का सात्विक चरित्र चित्रित किया है। विवेकचन्द I-आप देवचन्द्र के गुरुभाई थे। आपने सं० १६९६ वैशाख शुक्ल ८ के पश्चात् 'देवचन्द रास' की रचना की। इसमें विवेकचन्द ने देवचन्द को गुरुभाई तो बताया है किन्तु अपने गुरु और उनकी परम्परा का उल्लेख नहीं किया है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है-- सरस वचन रस वरसती, सरसति कवियण माय, समरिय श्री गुरु गायस्युं निजगुरु पणमिय पाय । श्री देवचन्द पंडित तिलक सुविहित साधु सिंगार, तास रास रलियामणो भणतां जयजयकार । गुरुजी गुण संभारतो संघ आवइ निजठाम, अप्पाणां भुक्यां घणां, कीधो देव प्रणाम । सरोतरा नगरि घणु तुठइ श्री जिनवीर, देवचन्द्रवरवंधुनो. विवेककहइइमरासोरे । ३ ठीक इसी समय एक और विवेकचंद नामक कवि का विवरण मिलता है जिसे आगे प्रस्तुत किया जा रहा है। अन्त १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २४४ (द्वितीय संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० ७८३-८४ (प्रथम संस्करण) ३. वही, भाग ३ पृ० ३१३ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३ पृ० १०७९-८० (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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