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________________ विमलविनय ४८५ विमलरत्न ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में 'विमलकीति गुरु गीतम्' नामक रचना आपकी छपी है। इससे पता चलता है कि विमलकीति हंबड गोत्रीय श्री चंदाशाह की पत्नी जवरा देवी की कुक्षि से सं० १६५४ में उत्पन्न हुए थे। उन्होंने साधु मुन्दर उपाध्याय से दीक्षा ली और जिन राजसूरि ने उन्हें वाचक पद प्रदान किया था। सं० १६९२ में वे किरहोट (सिन्ध) में स्वर्गवासी हुए। इसकी प्रारम्भिक और अन्तिम पंक्तियां प्रस्तुत हैं । आदि प्रात उठी नित प्रणमियइ हो विमल कीति गणिचंद, तेज प्रतापे दीपता हो, प्रणमै सहुवर वृन्द । अन्त विमलकीति गुरु नाम थी हो जाइई पातक दुरि, विमल रत्न गुरु सेवतां हो प्रतपे पुण्य पडूर । इसमें कुल आठ कड़ियाँ हैं। विमल विनय -खरतरगच्छीय गुणशेखर के शिष्य नयरंग आपके गरु थे। आपने अनाथी साधु सन्धि और अर्हन्त्रक रास नामक दो रचनायें की हैं। अनाथी साधु सन्धि (गाथा ७१) सं० १६४७ फाल्गुन शुक्ल ३ को कूसमपूर में लिखी यई। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है श्री जिनशासन नाइक नीकउ, सिद्ध बधूसिरि सुंदर टीकउ, वर्द्धमान जिनवर मनि ध्याइ, साधु सवे समरुं सुखदाइ। वीसमउ उत्तराध्ययन विचार, नाथ अनाथी तणउ अधिकार । सूत्र साखि गुरुमुख जिम सुणीयइ, तिम संबंध सयल अ भणीइ। इसमें अनाथी ऋषि की कथा उत्तराध्ययन के आधार पर लिखी गई है। इसका अन्त इस प्रकार है संवत सोल सइं सत ताले, फागुणत्रीज दिवस अजुआलइ । श्री कुसुमपुर वर मन मोहे, सोलम शांति जिणेसर सोहे । गुरुपरंपरा-श्री जिनशासन अह महंत, श्री जिनचंद्रसरि जयवंत । सहगुरु श्री गुणसेखर सीस, वाचक श्री नयरंग जगीस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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