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________________ ४८४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास बात सुणी जिन जन मुखइ, ते तिम कहिस जगीस, अधिको आछो जो हुवइ, कोय करो मत रीस ।' इस रास में स्पष्ट रूप से इसे विमलरंग के शिष्य कवियण, की रचना बताया गया है, यथा आग्रह अति श्री संघनइ ए, अहमदाबाद मझारि, रास रच्यो रलियामणउ ए, भवियण जण सुखकार । पढ़इ सुणइ गुरु गुण रसीए पूजइ तास जगीस; कर जोड़ी कवियण कहइ विमलरङ्ग मुनि सीस । इससे स्पष्ट लगता है कि यह रचना विमलरंग मुनि के शिष्य की है जो अपने नाम के स्थान पर 'कवियण' शब्द का प्रयोग करता है किन्तु श्री देसाई उस शिष्य का नाम लब्धिकल्लोल बताते हैं । उन्होंने इस जानकारी का कोई आधार या प्रमाण नहीं दिया है । भेंट होने पर सूरिजी ने अकबर को जीवदया का संदेश दिया गच्छपति द्यौ उपदेश अकबर आगलि, मधुर स्वरवाणी करी ए। जे नर मारइ जीव ते दुख दुरगति पामइ पातक आचरी ए। उसने सूरिजी को युगप्रधान की पदवी दी जुग प्रधान पदवी दिद्ध गुरु कू विविध बाजा बाजिया, बहु दान मानइ गुणह गानइ, संघ सवि मन गाजिया। उनके शिष्य महिमसिंह को पट्टधर बनाकर उनका नाम जिनसिंह सूरि रखा और जीव हत्या रोकने का फरमान जारी किया। रास का रचनाकाल इन पंक्तियों में बताया गया है-- वसु युग रस शशि वच्छर इए, जेठवदितेरस जांणि, शांति जिणेसर सानिधिइ ए, रास चडिउ परमाणि । इसकी कुल पद्य संख्या १३६ है जिसमें कुछ दो-दो और कुछ चारचार पंक्तियों के छंद हैं जो अलग-अलग रागों और ढालों में ढले हैं। इसकी भाषा गुर्जर प्रधान मरुगुर्जर है। १. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० ५९-७८ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ७८४ (प्रथम संस्करण) ३. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० ५९-७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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