________________
विमल रंग शिष्य
नवकाररास अथवा राजसिंह रास सं० १६०५ श्रावण शुक्ल १, गुरुवार को नडियाड में लिखी गई थी । इस रचना में राजसिंह के चरित्र के माध्यम से नवकार मन्त्र का महत्व प्रतिपादित किया गया है, यथा
आदि
रास रचउं नवकारनुं त्रिभुवन मांहि उदार, सांभलता सुख सम्पदा सुणतां जयजयकार | आनंद आदीश्वरी वंदी वसुधामाय, नामिदं सरसति सामिणी सिरसा निजगुरुपाय ।
गुरुपरंपरा - संघचारित्र नामइ भला रे मा० मूरति मोहन वेलि, पीहर ते पीडया तणा रे मा० साधु गुण केरइ वेलि । तास तणइ सुपसाउलइ रे मा० नट्टप्रद रहीचुमासी सु० रास रचीयो नुंकारनो रे मा०,
सीषिइ हियडा उल्लासी सु I
रचनाकाल - संवत सोल पंचोतरे सार, सुदि पडवइ सोहइ गुरुवार,
सरवड वरसइ श्रावण मास,
जग सघला नी पहुतइ आस ।
राजसिंह रासउ जे भणइ, रत्नवती कथा सुं गणइ ।
नवनिधि मंगलमाला मिलइ, विमलचरित्रइ वांछित फलइ । '
४८३
विमलरंग शिष्य (लब्धिकल्लोल ?) विमलरङ्ग के इस अज्ञात शिष्य की रचना 'श्री जिनचंदसूरि अकबर प्रतिबोधरास' (सं० १६४८, ५८ ? ) ज्येष्ठ कृष्णा १३, अहमदाबाद ) ऐतिहासिक महत्व की है और इसका उल्लेख 'कवियण' के साथ किया जा चुका है क्योंकि ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में यह कृति कवियण के नाम से क्रम संख्या २२ पर छपी है । इस रास में युगप्रधान जिनचन्दसूरि और सम्राट अकबर के मिलन का प्रसङ्ग वर्णित है । इसका आदि देखिये
श्री जिनवर जगगुरु मनधरि, गोयम गुरु पभणेसु; सरस्वती सद्गुरु सानिधइ, श्री गुरु रास रचेसु ।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २१-२२ ( द्वितीय संस्करण) और भाग १ पृ० १८८-१८९ तथा भाग ३ पृ० ६५८ (प्रथम संस्करण)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org