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________________ ४८२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्री अगरचन्दजी नाहटा के संग्रह में थी। अंजनासंदरी रास जैन रास संग्रह प्रथम भाग में प्रकाशित है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियां ये हैं शान्तिकरण जगि जाणिये, विश्वसेन कुलचंद, भाद्रपद वदि सातमिइं चबीया जगदानंद । मंगलाचरण के पश्चात् कवि ने दान-शील, तप भावना का महत्व बताया है, यथा चहुं प्रकार धर्म वर्णव्यो तिहुयण जन आधार, दान शील तप भावना करि तरिय संसार । धर्मे धणकण संपजे धर्मे मोटिमराज, धर्मे जस महिमा धणी धर्मे सीझे काज । इस सन्दर्भ में धन्ना, शालिभद्र, कयवन्ना, श्रेयांस और सुदर्शन आदि की धर्मवीरता का वर्णन किया गया है। अन्त में लेखक ने अंजनासुंदरी के शीलपालन की प्रशंसा की है, यथा ---- अंजनासुन्दरी भली पाम्यो शील उदार, शील बलें सखसम्पदा पामी निज परिवार । अंजनासुन्दरी ओ खरो ओ पाल्यो शील आचार, भवियण जण तिम पाल्योभाव सुं रे, जिमलहो कीरतिसार, शील समाचारो रे । गुरुपरंपरा--श्री राजचंद्र सूरि गणधर गाइइरे, सेवक विमलचारित्र, तास पसाई चोपइ अह रची रे, सेवक विमल चारित्र । रचनाकाल-संवत सोलह वरसे त्रेसठई रे, मागसिर मास विकास, च उपइ जोड़ी बीजे गुरु दिने रे, भणतां न्यान प्रकाश । विमलचरित्र सूरि--आप तपागच्छोय हेमविमलसूरि< सौभाग्यहर्ष सूरि>सोमविमलसूरि>संघचारित्र के शिष्य थे। आपकी रचना १. अगरचन्द नाहटा ----परंपरा पृ० ९० । २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ८१-८२ (द्वितीय संस्करण) ३. वही भाग १ पृ० ३९८-४०० और भाग ३ पृ० ८९६ (प्रथम संस्करण), भाग ३ पृ० ८१-८२ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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