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विमलचरित्र
४८१ ____ कवि ने युगप्रधान जिनचंद सूरि का इसी क्रम में सादर स्मरण किया है जिन्होंने सम्राट अकबर को जीवदया का सन्देश दिया था, यथा --
जसु मुखि जीवदया सुणी, अकबर साह सुजाण,
ठाम ठाम लिखि मूकिया, जीवदया फरमाण । रचनाकाल - संवत सोलह पइंसठइ, नीको आसू मास,
विजयदसमी दिन पूरीयो, नवरस वचन विलास । पडिकमणा स्तवन के अन्त में इन्होंने साधुसुन्दर को अपना गुरु बताया है, यथा--
श्री विमल तिलक सुसाधुसुन्दर पबर पाठक सीस ए,
वाचक विमल कीरति तवन कीधउ हरिषभर सुजगीस रे । श्री नाहटा ने इन्हें विमलतिलक का शिष्य कहा है । यशोधर रास में इन्होंने जिनसिंह, जिनभद्र, अमरमाणिक्य, साधुकीर्ति, विमलतिलक
और साधुसुन्दर तक की गुरु परंपरा गिनाई है। इससे ये साधुसुंदर के ही शिष्य प्रतीत होते हैं । पडिकमणा स्तवन का रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है (सं० १६९०, दीवाली, मुलतान)
संवत सोलह सयनिऊयइ दिवस दीवाली भणऊ,
मुलतांण मंडन सुमति जिनवर सामनइ सुपसाउलउ।' __ आपकी अनेक गद्यरचनाओं की सूची तो प्राप्त हो पाई किन्तु खेद है कि इनकी गद्यरचनाओं के उद्धरण न मिल पाने के कारण इनकी गद्यशैली का उदाहरण नहीं प्रस्तुत किया जा सका।
विमलचरित्र-ये पावचन्द्र सूरि के अनुयायी रत्नचरित्र के शिष्य थे। इस गच्छ को नागौरी बड़तपगच्छ कहा जाता है। पार्श्वचन्द्र सूरि के शिष्य समरचन्द्र, उनके राजचन्द्र और उनके शिष्य रत्नचरित्र थे। इनके शिष्य विमलचरित्र ने नागौर में 'अंजनासुंदरीरास' (३९७ कड़ी) सं० १६६३ मागसर शुक्ल २ गुरुवार को लिखा। इनकी अन्य रचनाओं में 'रायचन्द्र सूरि रास' और कुछ अन्य पद्यरचनायें १ जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३७६ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३
पृ० ९०८-१० तथा भाग ३ खण्ड २ पृ० १६०२ (प्रथम संस्करण) ३१
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