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मरु-गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का वृहद् इतिहास जगदंबा जगदीश्वरी, करयो रसना वास ।
आवरु न मांगू अकहूं पूरे मन नी आस । दूहा-देवगुरु सांनिधि करी, पनणू मित्रह रास,
माणिका किम खेप करी, स्त्री किम खेली सास ।' अतः इन्हें सुविधापूर्वक जैन माना जा सकता है और इनकी रचना जैन हिन्दी साहित्य के इतिहास की सीमा में आ जाती है।
विमलकीति-आप खरतरगच्छीय साधुकीर्ति उपाध्याय के शिष्य विमलतिलक के शिष्य थे। मरु-गुर्जर गद्य और पद्य में इनकी लिखित अनेक रचनायें उपलब्ध हैं, यथा- यशोधर रास सं० १६६५ अमरसर, जोधपुरमंडल पार्व स्तवन, बाहुबलि संज्झाय, प्रतिक्रमण विधि स्तवन सं० १६९०, मुलतान। आप गद्यलेखक भी थे। आपने आवश्यक बालावबोध १६७१, डण्डक बालावबोध, नवतत्व बालावबोध जीवविचार बालावबोध, जयतिहुयण बालावबोध, पक्खिसूत्र बालावबोध
और दशवकालिक टब्बा, प्रतिक्रमण समाचारी टब्बा, गणधर सारशतक टब्बा सं० १६८०, उपदेश भाषा टब्बा और इक्कीस ठाणा टब्बा आदि अनेक गद्यरचनायें की हैं। इनमें आवश्यक बालावबोध सबसे विस्तृत पुस्तक है। आपके शिष्य विमलरत्न भी अच्छे साहित्यकार थे । __ यशोधररास (२१ ढाल सं० १६६५ आसो शुक्ल १०, अमरसर) का आदि -
पणमिय पास जिणेसरु, तिकरणा शुद्ध तिकाल,
जास पसायइ संपजइ, शिवासुख लीलविलास । यह रचना जीवदया का महत्व समझाने के लिए रची गई है, यथा
जीवदया विणुतप कीयउ, फलदाइ नविथाइ,
अज्ञानी जपतप करइ तऊ पिणि सिद्धि न जाइ । १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ४६-४७ (द्वितीय संस्करण)
भाग ३ पृ० ६६५ (प्रथम संस्करण) २. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ. ७३-७४ ३ जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ११४-११६ (द्वितीय संस्करण) और भाग ___भाग ३ पृ० ३७६ (द्वितीय संस्करण)
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