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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
काव्य लिखे और आपकी लिखी कई टीकायें भी प्राप्त हैं । मरु-गुर्जर में आपने 'सोमचन्द्र राजा चौपई' की रचना सं० १६७०, जौनपुर में की । इसके अतिरिक्त चित्रसेन पद्मावती रास और राजगृहयात्रा स्तवन तथा समेत शिखर यात्रास्तवन' का भी उल्लेख मिलता है । इनमें से चित्रसेन पद्मावती रास की रचना विनयसागर ने की या विनयसमुद्र ने, यह निश्चित न हो पाने के कारण इसका विवरण नहीं दिया जा रहा है । सोमचन्द्र राजा चौपई ३२१ कड़ी की रचना है । यह सं० १६१७ श्रावण शुक्ल १५ बुधवार को सम्पूर्ण हुई । रचना का विवरण कवि ने इन पंक्तियों में दिया है
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संवत सोलह सत्तरइ रे, संवच्छर सुविचार, सावण मास सुहावनउ रे, पूनम तिथि बुधवार 1 नगर जौणपुर जाणीय रे नदी गोमती तीर, सकल संघनइ आग्रहइ रे रची कथा सुगंभीर । गुरुपरंपरा - बड़ खरतरगच्छ भलउ रे, श्री जिनहर्ष संतान, श्रीमानकीत्ति पाठक भलारे विद्यारयण निधान । तास शिष्य सोहइ भला रे देवकलश मुनिराय, श्री सुमतिकलश मुनि जाणीयइ रे नरवर वंदई पाय । तास शिष्य मुनिरंग सु रे, विनयसागर मुनिनाम, सोमचंद भूपाल की रे करी कथा अभिराम ।
इससे इनकी पूरी गुरुपरंपरा इस प्रकार स्पष्ट होती है कि आप श्री जिनहर्ष संतानीय मानकीर्ति, देवकलश, सुमतिकलश की शिष्य परंपरा में थे । विनयसमुद्र ( १६वीं सती) हर्ष समुद्र के शिष्य थे। दोनों गुरुओं में हर्ष और शिष्यों में विनय उभयनिष्ट होने के कारण उनको एक मानने का भ्रम नहीं होना चाहिये ।
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विनयसुन्दर - आपकी एक रचना 'सुरसुन्दरी चौपई' का उल्लेख मिलता है । इसका रचनाकाल श्री देसाई ने ज्येष्ठ शुक्ल १३ सं० १६४४ बताया है । अन्य कोई विवरण उपलब्ध नहीं है ।
१. श्री अगरचन्द नाहटा - परंपरा पृ० ८७
२. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ९१-९२ (द्वितीय संस्करण) और भाग १ पृ० २१८ (प्रथम संस्करण)
३. वही भाग २ पृ० २३० ( द्वितीय संस्करण ) भाग ३ पृ०७७८ (प्रथम संस्करण)
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