________________
विनयसागर
विजयजी ने पूरा किया ।" यह रचना चार खंडों में विभक्त है । इसमें प्रायः १९०० चौपाइयाँ हैं । इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है—
सरसति करी सुपसाय, पूरमनोरथ
माय ।
कल्पवेलि कवियण तणी, सिद्धचक्र गुणगावतां, अलिय विघन सवि उपशमे, जपतां जिन चोबीश, नमतां जिन गुरु पयकमल जगमां बधे जगीश । रचनाकाल - संवत सत्तर अड़ीसा वरषें, रही रानेर चोमासुजी, संघतणा आग्रही मांड्यो, तस अधिक उलासेजी । सार्धं सप्तशत (गाथा ७५० ) विरची पूहतां ते सुरलोकेजीं, तेहना गुण गावे छे गोरी मली मली थोके थोके जी ।
आप संस्कृत के प्रगाढ़ विद्वान् और साहित्यकार थे । आपका 'लोक प्रकाश' नामक प्रसिद्ध ग्रंथ जैन विश्वविधा ( cosmology ) से सम्बन्धित २० हजार श्लोकों का है । कल्पसूत्र पर आपने सुबोधिका संस्कृत टीका (सं० १६९६) और 'हैमलघु प्रक्रिया' नामक व्याकरण ग्रंथ भी संस्कृत में लिखा है । मेघदूत की तरह 'इन्दुदूत' नामक काव्य ग्रन्थ में आपने अनेक स्थानों का मनोरम वर्णन किया है । इस प्रकार आप १७वीं के अन्तिम चरण के प्रसिद्ध शास्त्रज्ञ विज्ञान, साधक संत और उत्तम साहित्यकार थे ।
विनयसागर - खरतरगच्छीय पिप्पलक शाखान्तर्गत श्रीजिनहर्ष सूरि की परंपरा में आप सुमतिकलश के शिष्य थे । आपने कई संस्कृत
४७७
१. ७५० गाथा सुधी विनयविजयजी ओ रास रानेर मां रच्यो, पछी तेओ सं० १७३८ मां स्वर्गस्था थया ने रास अपूर्ण रह्यो । ओटले तेमना प्रीतिपात्र व यशोविजय जी महोपाध्याय ने बाकी नो भाग पूरा कर्यो । जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १९ (प्रथम संस्करण ) । इस सन्दर्भ में निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिये
तस विश्वासभाजन तस पूरण, प्रेम पवित्र कहाया जी,
श्री नयविजय विबुध पद सेवक सुजसविजस उवझाया जी ।
तास वचन संकेते जी,
भाग थाकतो पूरण कीओ, तिणें बली समकित दृष्टि जे नर, २. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १८-१९ (प्रथम संस्करण )
तेहतणई हित हेतें जी ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org