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________________ विनयविजय ४७५ आपकी सहज भाषा में व्यक्त भाव भी बड़े मार्मिक और मुग्धकारी हैं। ___ आपने कई रचनायें नेमिनाथ और राजीमती के मधुर आख्यान पर आधारित करके रची हैं। इस प्रकार की प्रसिद्ध रचना नेमिनाथ भ्रमर गीता है। यह रचना प्राचीन फागु संग्रह में प्रकाशित है। इसमें विप्रलंभ और करुण रस की उत्तम निष्पत्ति हुई है। कवि ने कहा है तीर्थङ्कर बावीसमो यादव कुल सिणगार, राजीमती मन बालहु करुणा रस शृङ्गार। राजुल के शृङ्गार से सम्बन्धित दो पंक्तियाँ देखिये रतन जडित कंचुक कस खेचित कुच दोइ सार, एकाउलि मुगताउलि टंकाउलि गलिहार । नेमिनाथ के चले जाने पर राजीमती के विलाप में करुण रस प्रवाहित हुआ है निठुर नाह न कीजिइ एम विसासीघात, को न करी तिम कीधुते, जग लागि रहस्यई बात । रचनाकाल- भेद-संयम तणा चित्त आणो मान संवत (तयु) एह जाणु, बरस छत्रीसन वर्गमूल भाद्रवि प्रभु थुण्या सानुकूल । गुरुपरंपरा . श्री विजयदेव सूरितपगछनु सिणगार, श्री विजय सिंहसूरि जयवंता तास पटोधार। कीति विजय उवझायनुपामी चरण पसाय, यदुपति ना इम वाचक विनयविजय गुणगाय ।' नेमिनाथ से सम्बन्धित इनकी एक रचना नेमिनाथ बारमास भी है। यह २७ कड़ी की रचना सं० १७२८, रानेर में रची गई। इसके आदि में कवि कहता है - पन्थी अडोरे संदेसडो, कह्यो नेम ने अम, छटकी छेह न दीजीइ, नव भव नो प्रेम । मागसिर मासइ मोहिउ, मोहनी ओ मन्त्र, चित मोही लागी चटपटी, भावइ उदक न अन्न ।' १. प्राचीन फागु संग्रह पृ० २११-२१३ २. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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