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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास विनयमेरु -आप खरतरगच्छीय हेमधर्म के शिष्य और अच्छे कवि थे । आपकी प्राप्त पुस्तकों की सूची आगे प्रस्तुत है- हंसराज वच्छ राज प्रबन्ध सं० १६६९ लाहौर, शत्रुञ्जयरास सं० १६७९ जैसलमेर, सुदर्शन चौपइ सम्वत १६७८ सिद्धपुर, गुणसुन्दरी चौपई सं० १६६७ फतेहपुर, देवराज वच्छराज प्रबन्ध १६८४ रीणी, कयवन्ना चौपइ सम्वत् १६८९ बुरहानपुर, पन्नवणा विचार स्तवन सम्वत् १६९२ सांचोर और द्रौपदी चौपाई सम्वत् १६९८ ।' इनकी प्रथम रचना हंसराज वच्छराज प्रबन्ध चार खण्डों में है, इसका आदि देखिये
वीर जिणेसर चरम जिण प्रणमुं पय अरविंद, सद्गुरु पय प्रणमु वलि, मनि धरि परमाणंद । जिनवर वदन निवासिनी प्रणमैं सरसति हेव,
पुण्य तणा फल गाइसू सांनिधि करि श्रुतदेव । इसमें पुण्य का फल हंसराज वच्छराज के जीवन दृष्टान्त द्वारा दर्शाया गया है। इसके अन्त में गुरु परम्परा इस प्रकार कही गई है-- गुरुपरम्परा और रचनाकाल--
खरतरगच्छ अती दीपतो, श्री जिनचंदसूरिंद, तास सीस अति दीपता श्रीजिनसिंह मुणिंद । सोलसइ उगणहत्तरई लाहोरनयरमंझार, सांतिनाथ सुपसाउलई कीधो प्रबन्ध अपार । वचनाचारज दीपतो राजसार सूणजाण, मणिरयण कलानिलो शिष्य मुख्य सुजाण । हेमधर्म गुरु सांनिधइ मुझ सदा सुख आनन्द, विजयमेरु मुनिवर कहइ सुणतां श्रावक वृन्द । च्यारि खण्ड अ चउपइ, सरस प्रबन्ध उल्हास,
कवियण जनमन गहगहइ गावतां लीलविलास । २ इससे मालूम होता है कि आप जिन चंदसूरि की परम्परा में जिनसिंह>राजसार>मणिरत्न> हेमधर्म के शिष्य थे ।
आपकी दूसरी रचना कयवन्ना चौपई (२० ढाल २९० गाथा) सम्वत् १६८९ बुरहानपुर में लिखी गई। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ १. अगरचन्द नाहटा ----परंपरा पृ०८१ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १४५ (द्वितीय संस्करण) और भाग १
पृ० ४७८-७९ तथा भाग ३ पृ० ९५५-५५ (प्रथम संस्करण)
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