________________
४७०
मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसमें शील का महत्व दर्शाया गया है, कवि लिखता है-.
शील तणा गुण अति घणा, भाष्या श्री भगवंत । कलिकापिण कलियुगई नारद मुगति लहंति । कलावती गुण कलिजुगइ जाणइ बालगोपाल,
छेदी बाहु नवपल्लवो सील प्रभावि विशाल । रचनाकाल - संवत सोल त्रिहत्तरइ, वर विजयदसमी सार,
संबंध अह सोहामणउ, ग्रंथ तणइ अनुसार । प्रथम अभ्यास थकी रच्यउ नागउरि नयर मझारि,
अति चतुर श्रावक श्राविका सांभलइ हरष अपार । अकबर और जहाँगीर द्वारा जिनचंद्र सूरि की प्रतिष्ठा का भी उल्लेख कवि ने किया है, यथा
परवादि पाटणि जीपिया, गज थाट केसरि जेम,
पतिसाहि दोउ प्रतिबूझिया, अकबर साहि सलेम ।' इसकी अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार हैं
ओगणीस ढालइ गाइयउ अह बीज उखंड, विद्यासागर मुनिवरई, नव नव रागसुरंग आदेस जिनसिंह सूरिनइ परबंध अह रसाल,
श्री संघनइ सुणता थका, होवइ मंगलमाल । विद्यासिद्धि-आपका एक गीत 'गुरुणी गीतम्' सं० १६९९ ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह में प्रकाशित है। इसकी प्रथम दो पंक्तियां खंडित हैं। अन्तिम दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
सोलह सइ नियाणू वरस मई भाद्रव बीज अपार,
इम बोलइ विद्यासिद्धि साध्वी संपति हुवइ सुखकार । यह सात कड़ी का गीत है। इसमें साध्वी विद्यासिद्धि ने अपनी गुरुणी का यशगान किया है। इसके अतिरिक्त आपको किसी अन्य रचना का और आपके सम्बन्ध में किसी अन्य विवरण का पता नहीं चल सका है। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १७८-१८० (द्वितीय संस्करण) और भाग
३ पृ० ९६६-६८ (प्रथम संस्करण) २. वही ३. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह - 'गुरुणी गीतम्'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org