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________________ ४६८ मरु- गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् तिहास विद्याचंद-आप तपागच्छीय वीपा के शिष्य थे। इन्होंने विजयसेन सूरि निर्वाण रास सं० १६७१ के बाद लिखा। यह ऐतिहासिक जैन गुर्जर काव्य संचय के पृ० १५९ से १६५ पर विजयसेन सूरि निर्वाण संज्झाय के नाम से प्रकाशित है। इसके साथ ही गुणविजय कृत 'विजयसेन सूरि स्वाध्याय' भी छपा है जो पृ० १६६ से १७० पर छपा है। विद्याचंद कृत 'विजयसेन सूरि निर्वाण रास' का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है - सरसति मति द्यउ निरमली, मुखिद्यौ वचनविलास, गाऊँ तपगच्छ राजवी, विजयसेन गुणरासि । जगमाँ जगगुरु हीरजी, हुओ अधिक सोभाग, महिमा महि मांहि घणउ, जिम राममूनि महाभाग । तास पाटि उदयाचलिउं, उग्यु अभिनव भाण, श्री विजयसेन सूरीसरु, जेहथी नितस्यु विहांण । इस रास के अनुसार विजयसेन सूरि के सम्बन्ध में कवि के लिखा है नडोलाइ नगरी सोलचिडोतरी फागुण पूनिमजया, तात कमा कुलि मात कोडिगदे, सुत कुलमंडन आया।' सम्राट अकबर से विजयसेन की भेंट का उल्लेख इन पंक्तियों में किया गया है युगति जैन धर्म मत थापी, दिल्लीपति दिलवाल्यु, हीर सवाई विरुद धरावी, जिन झासन अजुआल्यु । रचना के अन्त में गुरुपरंपरा इस प्रकार दी गई है जय मांहि महिमा गुरुतणउ जे, अति घणउ छइ मइ सुण्य उं, दोइ हाथ जोड़ी बुद्धि थोड़ी, ठामि कोडी सउ गुण्यउ । श्री विजयदेव सूरिंद नंदउ भाविवंदउ वलीवली, वर विवुध वीपा सीस विद्याचंद आशा सवि फली । ३ आपकी दूसरी रचना 'रावण ने मंदोदरी आपेल उपदेश' का मात्र नामोल्लेख जैन गुर्जर क विओ में देसाई ने किया है। इसमें गुरू १. ऐतिहासिक जैन गुर्जर काव्य संचय पृ० १५९ २. वही, पृ० १६० ३ जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १७३ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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