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________________ विद्याकीर्ति ४६७ विद्याकमल--आपकी एक रचना 'भगवती गीता' का उल्लेख मिलता है जिसकी रचना सं० १६६९ से पूर्व हुई है। इसका विस्तृत विवरण हमें उपलब्ध नहीं हो सका है। विद्याकीति--खरतरगच्छीय क्षेमशाखा के प्रमोदमाणिक्य के शिष्य क्षेमसोम थे। इनके शिष्य पुण्यतिलक के आप शिष्य थे। इन्होंने नरवर्म चरित्र सं० १६६९, धर्म बुद्धि मंत्री चौपइ सं० १६७२, सुभद्रासती चौपइ सं० १६७५ में लिखी। धर्मबुद्धि मंत्री चौपइ के दो खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में २०३ गाथा है और द्वितीय खण्ड अपूर्ण है। इसके अलावा मतिसागर रसिक मनोहर चौपइ सं० १६७३ सरसा और मरवर्मचरित्र चौपइ भी प्राप्त हैं । धर्मबुद्धि चौपइ का आदि मंगलकरण जगत्रमइ, महामंत्र नवकार, समरीसि मन निश्चय करी, महिमा जासु अपार । मंगलाचरण में सरस्वती, गुरु और गणपति की वंदना की गई है। कवि प्रथम खंड के अंत में कहता है दोइ खंड ओक चउपइ सुणितां तृपति न होइ, प्रथम खंड इणि परि कहइ, सांभलिज्यो सहुकोइ । प्रथम खंड पूरण कियउ अ, देव सुगुर आधार भल, बीजउ कहिवा मन रलीजे, ते सुणिज्यो सुविचार । गुरु स्मरण इन पंक्तियों में हैं पुण्यतिलक गुरु सानिधइ अ, कीधउ अ अधिकार, विद्याकीर्ति इणिपरि कहइ अ, भव्य जीव सुखकार । सुभद्रासती चौपई तथा नरवर्मचरित्र का रचनाकाल ही प्राप्त है । उद्धरण उपलब्ध नहीं हो सका ।' १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १४२ (द्वितीय संस्करण) और भाग १ पृ ४७० (प्रथम संस्करण) २. अगर चन्द नाहटा---परंपरा पृ० ८५ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १४७-१४८ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३ पृ० ९५६-५८ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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