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________________ विजयसागर .४६५ विजयसागर--आप तपागच्छीय विद्यासागर के प्रशिष्य एवं सहजसागर के शिष्य थे। इन्होंने सं० १६६९ के आसपास सम्मेतशिस्त्र र तीर्थमाला' की रचना की। इसमें पालगंज (सम्मेत शिखर) के रक्षक राजा का नाम पृथ्वीमल्ल लिखा है। जयविजयकृत 'सम्मेत शिखर तीर्थमाला' सं० १६६१ में भी राजा का नाम पृथ्वीचंद (पृथ्वीमल्ल) है । अतः ये दोनों तीर्थमालायें पृथ्वीमल्ल के समय प्रायः आसपास की लिखी गई होंगी। सहजसागर के एक अज्ञात नाम शिष्य की एक रचना ३ बुकार अध्ययन संज्झाय' का भी रचनाकाल सं० १६६९ बताया गया है संभव है कि यह अज्ञातनाम शिष्य भी विजयसागर ही हों और यह संज्झाय भी इन्हीं की रचना हो। इसलिए तीर्थ माला और संज्झाय का परिचय एकत्र ही दिया जा रहा है। सम्मेत शिखरतीर्थ माला-- आदि-- प्रणमीय प्रथम परमेसरुजी, आगरा नयरसिंणगार कइ, पास चिंतामणि । परतिख परता से पूरवइ जी, सुगति मुगति दातार कई । आगरा में देहरा की स्थापना हीरविजय ने अपने हाथों की थी। यथा--सइं हथ हीरगुरु थापीयाजी, संवत सोल अडयाल कई रचना में अनुप्रास का प्रयोग देखिये-- राजराणिम ऋद्धि रंगरली जी, रागरमणि रंगरेलि, गिरुअडे गयवर गोरडी जी, गरजता गज गुरुगेलि । भाषा में लय और प्रवाह है, यथा-- इति तीरथमाला अति रसाला पूरब उत्तर वर्णवी, समकित बेली सुणी सहेली सफल फली नव पल्लवी। गुरुपरंपरा--तपगच्छराजा बहुदिवाजा विजयसेन सूरीसरो, तस पट्टि पूरो जिसो सूरो विजयदेव यतसरो। यह रचना प्रकाशित है। इषकार अध्ययन संज्झाय--यह रचना सहजसागर शिष्य संभवतः विजयसागर की ही है। यह सं० १६६९ बगडी में लिखी गई । रचना१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १४३-१४४ (द्वितीय संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० १४३-१४४ (द्वितीय संस्करण) और भाग १ पृ० ४६४-६५ तथा भाग ३ पृ० ९३८ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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