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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
दानसीयल तप भावना च्यारे धर्म प्रधान, तेह मांहि तप सलहीयइ, तपथी मोक्ष निदान | रचनाकाल - सोलह सइ चुराणुइ काती, वदि गुरुवारि री माई, हस्त नक्षत्र अकादशी, प्रीतियोग सुविचार दी माई | "
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यह रचना इन्होंने अपने गुरुभाई भावशेखर के आग्रह पर रची थी।
ऋषिदत्तारास (३ खंड ७७५ कड़ी) सं० १७०७ (१६७७ ? ) वसंत वदी ९ को भिन्नमाल में लिखी गई । इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है कि उससे १६७७ और १७०७ दोनों तिथियाँ मिलती हैं यथा - ससधर ( चन्द्र = १ ), सागर (७), मुनि १६; इस प्रकार सं०१६७१ या सीधे तरफ से पढ़ने पर (जैसी पद्धति प्रायः नहीं है) ससधर ( चंदमा == १), सागर = ७, तीसरा अंक खाली = शून्य और मुनि = ७, तो १७०७ संवत् भी निकलता है। इनकी सं० १६९४ तक की रची हुई रचनायें तो प्राप्त ही हैं, इसलिए दोनों तिथियां सम्भाव्य हैं । यह रचना भी ऋषिदत्ता के शीलपालन पर ही प्रकाश डालती है । कवि कहता है - सीलइ सोहिरी रिषि सीलइ सोहि अर्थात् ऋषि शील के बिना शोभा नहीं देते । रचनाकाल इस प्रकार लिखा गया है—
संवत मुनिसागर ससिधर, मनहर मास वसंत, मेचक पक्ष नवमी दिनइ ओ, ज्येष्टाभ कहिउ तंतरी । श्री भीनमाल पास परसादिइ रास चडिउ परिमाणइ, ढाल इग्यारमीं खंड ओ त्रीजइ, विजयशेखरवखाणइरी । २
आप गद्य लेखक भी थे । आपने 'ज्ञातासूत्रबालावबोध' की रचना की है। इसका नमूना उपलब्ध नहीं हो सका, परन्तु यह स्पष्ट है कि आप कुशल कवि और गद्य लेखक थे । आप न केवल सिद्धहस्त कवि, तपस्वी एवं विद्वान थे अपितु संगीतज्ञ और क्लामर्मज्ञ भी थे । इस प्रकार १७वीं शताब्दी के साहित्यकारों में आपका स्थान महत्वपूर्ण है ।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ०
भाग ३ पृ० १००३-०९ तथा भाग ३ खण्ड २ पृ०
संस्करण )
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२३८ ( द्वितीय संस्करण) २३५ - २४१ ( द्वितीय
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संस्करण ) और १६०० ( प्रथम
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