SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 480
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विजयशील ४६११ यह प्रबन्ध चार खण्डों में है, यथा-- सरस प्रबन्ध छे अहनो, वलि अधिक ढाल रसाल, कवियण सुणतां गहगही, च्यार खंड सुविशाल । अ चरित्र जलधर समो, वचन अमृत जलविन्दु, मधुर स्वरे ते गाइ ज्यु भविक मोर सुखकंद । गुरुपरंपरा और रचनाकाल खरतरगच्छ अति दीपतो, श्री जिनचंदसूरिंद, तास सीस अति दीपतो, श्री जिनसिंह मणिंद । सोल सइ उगणहुत्तरइ लाहोर नयर मझारि, सांतिनाथ सुपसाउल इ, कीधो प्रबंध अपार । हेमधर्म गुण सांनिधइ मुझ सदा सुख आनंद, विजयमेरु मुनिवर कहइ सुणतां श्रावक वृन्द । कथा का उद्देश्य - पुण्य तणा फल छे बहु, पुण्ये जसवर चित्त; हंसराज वछराज वर, हंसावली ढाल चरित्त । हंसराज वछराज की कथा को दृष्टान्त रूप में प्रस्तुत करके कवि ने पुण्य के माहात्म्य पर प्रकाश डाला है।' विजयशील- आंचलगच्छीय गुणनिधान के शिष्य धर्ममूर्ति थे । इनके शिष्य हेमशील आपके गुरु थे। आपने 'उत्तमचरित-ऋषिराज चरित चौपाई' सं० १६४१ भाद्र कृष्ण ११ शुक्रवार को खलावलि में लिख कर पूर्ण किया। कवि ने गुरुपरम्परा इस प्रकार बताई है श्री अंचलगछ शृङ्गार रे, श्री गुणनिधान सूरि सार, तस पाटि सदा उदयवंता रे, सूरि श्री धर्ममूर्ति जयवंता। तस गछ विभूषण भाण रे, जगि महिमावंत सुजांण, श्री हेमशील मुनिराया रे, वरवाचक वंश सुहाया। तस सीसभणइ विजयशील रे, रास सुणता लहीइ लील । रचनाकाल -संवछर सोल अकतालइ रे, भाद्रवा वदि वरसालि, इग्यारस सुकरवार रे, श्री शीतलजिन आधारइ, ___षलावलिषुर चउमासि रे, रास रचिउमनि उल्हासि ।' १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४७८-४७९ (प्रथम संस्करण) २. वही भाग ३ पृ० ७७४-७७५ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy