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________________ '४६० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास विजय कुशल शिष्य -तपागच्छ के विजयदेवसूरि के शिष्य 'विजय कुशल के किसी अज्ञात शिष्य ने सं० १६६१ में 'शीलरत्न रास' का सामेर (जि० उज्जैन) में प्रारम्भ करके उसे मदनजी तीर्थ में पूरा किया। कवि रास में लिखता है श्री मगसी पास पसाउलि, कीधउ रास रतन्न, भविक जीव तमे सांभलो, करयोशील जतन्न । सामेर नगर सोहामणो, नयर उजाणी पास, बाडी बनसर सोभतं, जिहां छि देवनी वास । रचनाकाल -संवत सोलअकसठि कीधउ रास रसाल, शीलतणा गुण मी कही मुकी आल पंपाल । [-गुरुपरंपरा-विजयकुशल वैराग्य थी, जाणी अथिर संसार, __ छती ऋद्धि छाड़ी करी, लीधउ संयम भार ।' कवि अन्त तक अपना नाम नहीं लिखता, यथा तप तेजि करी दीपतउ महामुनिसर राय, कयु रास रलीयामणउ, प्रणमी तेहना पाय । किसने रास किया, यह कवि नहीं बताता किन्तु यह रचना १७वीं शताब्दी की है और शील का माहात्म्य सरल मरुगुर्जर में उपस्थित करती है। विजयमेरु -खरतरगच्छीय राजसार के शिष्य मणिरत्न थे इनके शिष्य हेम धर्म के आप शिष्य थे। इन्होंने सं० १६६९ में "हंसराज वछराज प्रबंध' लाहौर में लिखा। इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है - वीर जिणेसर चरम जिण प्रणमुं, पय अरविंद सद्गुरु पय प्रणमुं । बलि मनि धरि परमाणंद । जिनवरवदन निवासिनी, प्रणमुं सरसति हेव, पुण्य तणां फल गाइसु सांनिधिकरि श्रुतिदेव । १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ३९४-९५ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३ पृ० ८८३-८४ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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