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________________ ४५८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कृत मेघदूत की तरह आपने 'पवनदूत' नामक एक सरस खंडकाव्य लिखा है। यशोधर चरित्र सं० १६५७ में लिखा गया। मरुगुर्जर में आपने श्रीपाल आख्यान, भरतबाहुबलिछंद, आराधना गीत, अम्बिका कथा और पाण्डव पुराण नामक रचनायें की हैं, इनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है । श्रीपाल आख्यान-नाथूराम प्रेमी इसे गीतिकाव्य बताते हैं। इसकी रचना संघपति घनजी के कहने पर सं० १६५१ में हुई। इसमें नौ रसों का समावेश है और अधिकतर दोहे तथा चौपाई छंदों का प्रयोग किया गया है । इसका मंगलाचरण प्रस्तुत है आदिदेव प्रथमि नमि, अंति श्रीमहावीर, वाग्वादिनी वदनेनमि, गरुउ गुणगंभीर । सरसति सुभमति पाये अणुंसरि, गोर गरुआ गोयम मन धरि । बोलु एक हुं सरस आख्यान, सुणजे सज्जन सहु सावधान ।' गुरु परम्परान्तर्गत कवि ने विद्यानंदी से प्रभाचंद तक के गुरुओं को नमन किया है और लिखा है जगमोहण तसुपाट उदयु, वादिचंद्र गुणालय जी, नवरस गीति जिणि गाऊ चक्रवर्ति श्रीपालजी। रचनाकाल –संवत सोल अकावना से, कीधु अय संबंध जी, भवियण थीर मन करि निसुणयो, नितनित अ संबंध जी। रचना का उद्देश्य - दान दीजिजिनपूजा कीजि, समकित मन राखिजे जी, नवकार गणीइ सूत्र ज भणी, असत्य वचन नव भाखीजि जी। जगह-जगह पर कवि ने इसे गीत कहा है, संभवतः इसीलिए प्रेमी जी भी इसे गीत कहते हैं पर वस्तुतः इसमें गीतकाव्य की गेयता छोड़कर अन्य तत्व नहीं हैं। भरतबाहुबलिछंद-(५८ कड़ी) की अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार हैं कोशल देश अयोध्या सोहीइ, राजा ऋषभ सहुमन मोहीयइ, घरि दो सोहीइ अनोपम राणी, रूपकला जीपइं इन्द्राणी। १. डा० प्रेम सागर जैन--हिन्दी जैन भक्ति काव्य पृ० १३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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