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वादिचन्द 'विक्रमरायचरित्र का प्रारम्भ
श्रीवर दी वरदायक सदा, गजवदन गुणगंभीर,
एकदंत अयोनीसंभव, सबल साहस धीर । इसमें कवि ने अपना नाम विप्रवसु लिखा है, यथा
___ कवि विप्र वसु अम भणि, करजोड़ी लागू पाय, दूसरी जगह अपना नाम वस्तो भी लिखा है
कवि वस्तो कहि करजोड़ी, विक्रम नामि संपद कोडि । सगालशा शेठ के अन्त में लिखा है
धर्मकथा जे श्रवणे सुणि, जाइ पाप तस वैष्णव भणि । सांभलतां सुख पामी सोय, बंधव पुत्र वियोग न होय । सुणी कथा जे दीई दान, नरनारी ने गंगसनान,
जाइ तीर्थ जाय फल हरि, कर्ण कथा कवि वासु कहि ।' इस प्रकार वह विप्रवसु, वस्तो, कवि वासु आदि कई नाम लिखता है। विक्रम चरित्र का लेखक तो निश्चय विप्र वस्तु या कवि वस्तो जैनेतर हैं। सगालशा शेठ चौपई का लेखक अपने को विप्र के स्थान पर वैष्णव कहता है इसलिए यह भी जैनेतर ही है और संभव है कि दोनों एक ही व्यक्ति हों। सगालशा चौपई में दानी कर्ण की कथा के उदाहरण से दान का माहात्म्य बताया गया है और विक्रमचरित्र में विक्रमादित्य के परकाया प्रवेश की कथा दी गई है। इनके रचयिता भले जनेतर हों पर इनका प्रतिलिपि लेखन और संरक्षण जैनभंडारों में हुआ है और मरुगुर्जर भाषा में होने के कारण ये मरुगुर्जर की रचनायें हैं।
वादिचन्द –ये दिगम्बर सम्प्रदाय में मूलसंघ के थे। इनकी गुरुपरम्परा इस प्रकार है--भट्टारक विद्यानंदी>मल्लिभूषण>लक्ष्मीचंद्र> वीरचंद्र ज्ञानभूषण>प्रभाचन्द्र । आप प्रभाचन्द्र के शिष्य थे । आपने संस्कृत में पावपुराण लिखा जिसकी श्लोक संख्या १५०० है। यह कृति कार्तिक शुक्ल ५ सं० १६४० में वाल्हीकनगर में रची गई । आपका 'ज्ञान सूर्योदय' नामक नाटक बड़ा लोकप्रिय था। कालिदास १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खण्ड २ पृ० २१४२-४५ (प्रथम संस्करण)
और भाग १ पृ० ४६१ (प्रथम संस्करण)
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