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________________ ४५६ बाद लिखा है— मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तस्य पदपंकज मधुकर गुणकीरति सुविशाल, तस्य चरणे नमी सदा बोले ब्रह्म वस्तुपाल । रचनाकाल - विक्रमराय पछि सुणो संवछर सोल सार, चोपनो ते जाणीइ आषाढ़ मास सुखकार । श्वेतपक्ष सोहामणो रे तृतीयानी सोमवार, श्री नेमि जिन भुवन भलुं रे रास पुरु हवो तार । भणि गुणि जे सांभली मनि आणी बहुभाव, ब्रह्म वस्तुपाल सुधुकहि तेहनि भवजल नाव ' वसु, वासु या वस्तो- श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ में १७वीं शताब्दी के जैनेतर कवियों की सूची में वसु, वस्तो या वासो का विवरण दिया, किन्तु कवि की रचना 'सगालशा शेठ चौपई' (सं० १६४७ से पूर्व) के प्रारम्भ में 'श्री राजमूर्ति गणि गुरुभ्यो नमः' लिखा है । राजमूर्ति गणि की वंदना प्रतिलिपिकार ने की है पर यह पता नहीं कि लेखक का जैन धर्म से सम्बन्ध था अथवा नहीं। इस कथा पर आधारित 'सगालशा रास' की रचना इसके पश्चात् जैनकवि कनकसुन्दर ने की है । यह रचना प्रकाशित है । वसुविप्र द्वारा विरचित एक रचना 'विक्रमराय चरित्र' भी उपलब्ध है और श्री देसाई का अनुमान है वसुविप्र (विक्रमराय चरित्र के लेखक ) और वस्तो या वासु ( सगालशा शेठ चौपई के लेखक) एक ही व्यक्ति हैं । दोनों रचनाओं के प्रारम्भ में गणेश वंदना है, दोनों में कोई गुरुपरंपरा नहीं दी गई है, इसलिए अनुमान होता है कि यह कवि जैनेतर हैं, विप्र हैं और इन्हींने दोनों रचनाओं का निर्माण किया है । दोनों रचनाओं की कुछ पंक्तियाँ यत्र-तत्र से उद्धृत कर रहा हूँ सगालशा० शेठ चोपई का प्रारम्भ प्रथम गणपति वीनवू, सरसति लागू पाय, कर्णकथा हूँ वीनवू जउमति आपु माय । १. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल --- राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ सूची ५ वां भाग पृ० ४७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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