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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इन पंक्तियों के आधार पर कवि का नाम विल्ह ही ठीक जंचता है। संभवतः वह रचना स्त्री के मायावी या छली रूप को व्यक्त करने के उद्देश्य से लिखी गई है। हो सकता है कि ये वे ही विल्ह हों जिनके शिष्य ने 'कुकडा मार्जारी रास' लिखा है। इस सम्बन्ध में सतर्कता पूर्वक शोध की आवश्यकता है।'
वस्तुपाल(वाचक)-तपागच्छ के पाश्चंद्रसूरि की परम्परा में आप विजयचंद्रसूरि के प्रशिष्य एवं हीरमुनि के शिष्य थे। आपने हंसवच्छराज प्रबन्ध अथवा चौपाई लिखी है। इसका प्रथम खण्ड ही प्राप्त है। इसमें कुल कितने खण्ड थे और यह रचना किस संवत् में की गई थी यह पता नहीं चल पाया है क्योंकि प्रति प्रथम खंड के पश्चात् खण्डित है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं--
श्री गुरुचरण कमल नमू, सुमति सुख दातार,
मूरख थी पण्डित हुवे, ते श्री गुरु आधार । - अन्य जैन कवियों के समान वस्तुपाल भी ढालों-देसियों, धुनों और रागों के प्रयोग में प्रवीण हैं। इन्होंने केवल प्रथम खंड में १६ ढालों का प्रयोग किया है जैसा निम्न पंक्तियों से प्रकट होता है--
सोलवी ढाल पूरीथइ, बीरहे बीथा विहु दूरे गई, सुणता भणता लहीजे भोग, मनवंछित मानवसंजोग । पहेलो खण्ड ओ पुरो थयो, हंसावती नृप मेलो हुयो,
वणारसी कहे वस्तुपाल, पुण्ये पहुंचे मनोरथ माल । प्रथम खंड के अन्त तक कथा हंसावती और बच्छराज के मिलन तक पहुंच गई है, यह रचना दान के माहात्म्य पर आधारित है, कवि ने लिखा है
कोतहल मन आवीयो करूं कथा परबंध, हंसवच्छ बंधवतणो रचुं सरस सम्बन्ध । दानै दुरीत सवी टलै हंस वछ जिम जाण, दान थकी संपद लह्या, करुं तास बखाण ।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खण्ड २ पृ० २१४१ (प्रथम संस्करण) २. वही भाग २ पृ० २५४-२५५ (द्वितीय संस्करण)
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