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________________ ४५२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कवि की काव्य प्रतिभा का नमूना देखने के लिए निम्नांकितक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं सोमकला गुणि चंद्रमा श्री पासचंद सूरिराय, भवजल तारण पोत सम, प्रणमुं तेहना पाय । जगि जे जे विद्या अछि ते सवि सुगुरु प्रमाणि, तेल विन्दु जिम जलि मिल्यउ पसरइ संसयमाणि । जउ गुरु तूसी भाव स्यउं अक्षर एक दीयंति, वटवृक्षना बीज जिम, सय साखइ पसरंति ।' इसके मंगलाचरण की कुछ पंक्तियाँ देकर इनका विवरण समाप्तत किया जा रहा है आदि जिणवर आदि जिणवर विमलगुण गेह, त्रिभुवनमंडन जगि जयउ, सकलमंगल वृद्धि कारक, लोकालोक प्रकाशकर नाणमाण जगजीव तारक। नाभिराय मरुदेवि सुत मनवांछित दातार, परमपुरुष मे प्रणमता सुखसंपत्ति फलसार । वर्द्धमान कवि-आप भट्टारक वादिभूषण के शिष्य थे। आपने सं० १६६५ में भगवान महावीर पर 'भगवान महावीर रास' लिखा । यह रचना भगवान महावीर के जीवन पर आधारित हिन्दी रचनाओं में पर्याप्त प्राचीन तो है ही, काव्यत्व की दृष्टि से भी अच्छी है। इसकी एकमात्र पाण्डलिपि अग्रवाल दिगम्बर जैनमंदिर उदयपुर में सुरक्षित है।३ वर्द्धमान कवि ब्रह्मचारी ये। इससे अधिक इनके सम्बन्ध में सूचना नहीं मिल सकी है। ग्रंथ रचना से सम्बन्धित पंक्तियां आगे दी जा रही हैं संवत सोल पासठि मार्गसिर सुदि पंचमी सार, ब्रह्म वर्द्धमान रास रच्यो, तो सांभलो तम्हें नरवार ।४ १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १९२-१९७ (द्वितीय संस्करण) २. वही भाग १ पृ० २६९-२७४ और भाग ३ पृ० ७६७ (प्रथम संस्करण) ३. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल-'राजस्थानी पद्य साहित्यकार'-राजस्थाना का जैन साहित्य पृ० २१० ४. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल-प्रशस्तिसंग्रह पृ० ३३ और राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ सूची ५ वां भाग पृ० ६४१ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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