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बच्छराज
रचनाकाल - संवत सोल बइताला तणउ,
माघ मास अति रलियामणऊ ।
ऊजलि पाख पंचमि गुरुवारि, सिद्धियोग शुभमुहूर्तसार समकित सहित जिनभाषित धर्म, आचरंता हुई शिवपदशर्म । ऋषि वछराज कहि आणंद आणि, नवखंड ऊपर चूलिका जांणि ।
अंत -
नीतिशास्त्र पंचाख्यान (पंचतन्त्र) चोपाई अथवा रास (३४९६ कड़ी) सं० १६४८ आसो शुदी ५, रविवार को पूर्ण हुआ । इसमें कवि ने अपने गुरु का नाम रत्नचरित्र के बजाय रतनचंद लिखा है, इसलिए श्री देसाई ने नाम 'रत्नचंदचारित्र' लिखा है । कवि की पंक्तियाँ देखिए -
श्री समरचंदसूरि शिष्य उदार,
श्री रतनचंदपंडित तस विचार ।
श्री गुरु नो पामी सुपसाय,
गणि वच्छराज जिन प्रणमइ पाय ।
शेष गुरुपरंपरा पूर्ववत् है । यह रचना विष्णुशर्मा कृत पंचतन्त्र पर आधारित है, यथा
विष्णुशर्मा ब्राह्मण मतिनिलउ,
श्री गोडन्याति बडउ कुलतिलउ । सरस कथा तिणि कही केलवी, पञ्चाख्यान आव्या अभिनवी । रचनाकाल - संवत सोल अड़ताला तणइ, आसू मास अति रलियामणइ । पञ्चमतिथि उत्तम रविवार, शुभ मुहूरत ओ कीधी सार । '
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सरजल थी उपजे शतपत्र, गंधपवन विस्तारइ तत्र, तिम उत्तम करई उपगार,
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परगुण ग्रहण रसिक सविचार |
हा श्लोक काव्यनई वस्तु, आर्या चउपइ मिली समस्त, सर्वअंक गणतां चउपइ, चउत्रीस सय छनुं सविथइ |
१. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १९२ - १९३ ( द्वितीय संस्करण )
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