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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास लूणसागर-आपके सम्बन्ध में कोई विवरण उपलब्ध नहीं हो सका। आपकी प्राप्त रचना 'अंजना सुन्दरी संवाद' का रचनाकाल सं० १६८९ ज्ञात है।'
वच्छराज -आप पावचंद्र के प्र-प्रशिष्य समरचंद्र के प्रशिष्य एवं रत्नचरित्र के शिष्य थे। आपने सं० १६४२ माघ सुदी ५ गुरुवार को त्रंबावती (खंभात) में १४८४ कड़ी की एक विस्तृत रचना 'सम्यकत्व कौमुदी रास' नाम से लिखी। कवि की भाषा शैली और अन्य सूचनाओं से सम्बन्धित पंक्तियाँ प्रस्तुत की जा रही हैं। प्रारम्भ- वीर जिणवर वीर जिणवर सुगुण भंडारइ,
सर्व संघ कल्याणकर जासु तित्थ जयवंत जागइ, मनवंछित फल ते लहइ, जब जीव तसु चरण लागइ । अकलरूप तिहुअण तिलउ, त्रिभुवनु आधार, चउवीस जिनपति नमुं जिमलहउं हर्ष अपार । बड़तपगछ बड़तपगछ श्री पासचंद सूरीसर, तसु पय प्रणमी हं रचउं सरस सार संबंध ।
श्री समकित गुण कौमुदी, विमल कथा प्रबंध । गुरुपरंपरा--श्री महावीर सोहम गणधार, तास परंपर आव्या सार,
बड़तपगछ नायक मुनिचंद, श्री पूज्य पासचंद सूरि । तास पटोधर अधिक जगीस, श्री समरचंद सूरींद सुणीस । तास पाटि प्रभावक भला श्री राजचंदसूरि चडती कला। श्री समरचंदसूरि सीस पवित्र वाचक श्री रत्नचरित्र,
तास सीस रची चुपई, गुरुप्रसादि पूरी थई। रचना स्थान- त्रंबावती नगरी सुखबास, थंभण श्री नवपल्लव पास,
तास प्रसादि रची चुसाल, श्री समकित गुण कथा रसाल ।
चन्द्रर्षि महत्तर माने जाते हैं। महासती अनुसरई से बालावबोधकार का तात्पर्य शती का अनुसरण करके लिखा गया (सत्तरी नामक ग्रन्थ)
महा विशदता का सूचक है।-(डा० सागरमल जैन) १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५४७ (प्रथम संस्करण) २. वही भाग २ पृ० १९२-१९३ (द्वितीय संस्करण)
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