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लावण्यभद्रगणि शिष्य
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गजसुकुमाल रास और देवकी ६ पुत्र चौपाई संभवतः एक ही रचना के दो नाम हैं, जो हो, यह विशेष रूप से मूल पाठों का मिलान करके ही निश्चय किया जा सकता है । यहाँ गजसुकुमालरास से कुछ अंश उद्धृत किया जा रहा है
वंदीवा छुड़ावीया रे, सगला नगर मझारो, मुहमांग्या दीधा घणा रे मणमाणकभंडारो । महमाण कवहं दीधा देषी, मनरी ओछा कोइ न राषी, लावणकीरती ढाल ज भाषी, चोथी पांचमी ओ तहु साषी, जी माताजी जी हो ।
हो - हाथी नो हु त्रेतालवी, देवकी सुत सुकमाल, बालक जनम्यो तेहवो नामै गजसुकुमाल |
भाषा में संगीत सुलभ लय और गेयता है, ऐसा प्रभाव उत्पन्न करने के लिए कवि ने अनेक लोकप्रिय धुनों या देसियों का प्रयोग किया है ।
अन्त
लावण्यभद्रगणि शिष्य ( गद्यकार ) - आपकी रचना 'सत्तरी (कर्म) बालावबोध' - यह मूलतः चंदमहत्तर की प्राकृत रचना पर लिखित बालावबोध है । इसकी गद्य भाषा का नमूना प्रस्तुत करने के लिए कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की जा रही हैं-आदि - मुक्ति ना काम सुखनइ विषय
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दीपावणहार अहवउ श्री सिद्धांत जयवंतु वर्त्तउ । कुबोधरूपी आतापे करी आताच्या जीवनई ओ श्री सिद्धान्त मलयाचल नां वाप समान छइ । ते भणी ओ सिद्धान्तनंइ नमस्कार करुं । चंद महत्तर... महासती ( महाशतक) नइ अनुसारि कही सत्तरि गाथा कहीइ । नियुक्तिकार नइ मति निश्चइ ऊणी निऊ गाथा | अता निव्यासी आथा हुई । '
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१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३६० (द्वितीय संस्करण)
टिप्पणी- श्री मो० द० देसाई में इस बालावबोध में महासती शब्द को देखकर ग्रन्थकर्ता को चन्द्रमहत्तरा मान लिया वस्तुतः सत्तरी के कर्ता
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