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________________ ४४८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास लावण्यकीति-ये खरतरगच्छीय ज्ञानविलास के शिष्य थे। हरिबल चौपाई सं० १६७१ जैसलमेर, पुरोषोदय धवल, गजसुकुमाल चौपइ, देवकी छ पुत्र रास, आत्मानुशासन गीत और रामकृष्ण चौपाई इनके उपलब्ध काव्य ग्रन्थ हैं।' रामकृष्ण चौपइ अथवा रास ६ खण्डों में ६८ ढाल युक्त १२०० कड़ी की विस्तृत एवं महत्वपूर्ण रचना है। इसमें कृष्ण और बलराम के चरित्र चित्रित हैं । यह वैशाख शुक्ल ५, सं० १६७७ में ओसवाल भंसाली बाघमल के आग्रह पर लिखी गई थी। इसकी रचना विक्रमपुर या बीकानेर में सम्पन्न हुई। इसका आदि इस प्रकार हुआ है जगत आदेकर जगतगुरु, आदिसर अरिहंत, विधनहरो सेवक तणां भयभंजण भगवंत । इसमें नेमि, पार्श्व और वर्धमान की स्तुति की गई है। कवि कहता है कि महापुरुषों का चरितगान करने से जीव पाप रहित होता है और संसार सागर से तर जाता है- इसीलिए वह रामकृष्ण का गुणानुवाद करता है । इसमें रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है राजइ सूरजसिंह नरिंद नई विक्रमपुरि गहगाह, संवत सोलहसय सतहत्तरइ, सुदि पंचमि वइसाह । आगे कवि ने आग्रहकर्ता माघमल्ल के सुपुत्र का इन पंक्तियों में उल्लेख किया है जेतमाल सुत धीर सधरसही, माघमल्ल वर जास; पुत्ररयण तस सुपुरिस परगडो, धरम करम घर नाम । तेह तणे आग्रह मन आंणियइ, जांणी लाभ विशेष; हेमसूरि कृत नेमिसर तणो, चरित्रभणी परिदेख । श्री देसाई ने इन्हें क्षेमशाखा (खरतर) में गुणरंग का प्रशिष्य एवं ज्ञानविशाल का शिष्य कहा है किन्तु कवि ने रामकृष्ण चौपइ में अपने को ज्ञानविलास का ही शिष्य कहा है । यथा मसाखि जाणीता जगन्नमइ वाचक श्री गुणरंग, तासु सीस वाचक गुरु चिरजयउ ज्ञानविलास अभंग। १. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० ८४-८५ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २११ (द्वितीय संस्करण) ३. वही पृ० २१० और भाग १ पृ० २१७-१८ तथा भाग ३ पृ० ६९२-९४ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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