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लालविजय
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नेमिनाथ द्वादसमास एक बारहमासा है। यह २६ कड़ी की सरस. भाबपूर्ण रचना है, इसकी भाषा हिन्दी है। इसके प्रारम्भ और अन्त की कड़ियाँ प्रस्तुत कर रहा हूँआदि-- वीनवि उग्रसेन की लाडली कर जोरि
के नेम के आगि खरी, तुम काहि पिया गिरनार चढ़े, हमसे तो कहो कहा चूक परी। यह वेस नहीं पिया संजम की तुम काहीं कुं येसी विचित्र धरी।
कैसे बारहमास वीतावोगे, समझावोगे मुझि याह धरी । अन्तिम २६वीं कड़ी इस प्रकार है--
बारह मास जो पूरे भये तब नेमकु राजल जाय सुनायो, जामें द्वादश भात वणी तव पीछे से राजलकुं समझायो। राजलवी तब संजम लेकर निर्जरा के
वश निज कर्म जलायो, राजल के यत नेम जिणंद है,
___उत्तर लालविज विधि गायो।' प्रस्तुत बारहमासे में लालविजय का नाम तो है किन्तु गुरुपरंपरा नहीं दी गई है इसलिए यह शंका की जाती है कि शायद यह रचना किसी अन्य लालविजय की हो किन्तु जब तक ऐसा प्रमाणित न हो जाय, केवल शंका के आधार पर इसे किसी अन्य की रचना मान लेना युक्तिसंगत नहीं लगता। इसकी सरसता के उदाहरणार्थ चार पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
बड़ाई कहा करीये मुनिराजुल जीवन हे निसिको सुपनो, सुत बंधव बंधु सब जात चले जलकुंदन सो नीतनो अपनो। दिग च्यारन के मजमांन सवे चिरता न रहा कछु सबही अपनो, तिहां ते यह जांणि आनंद सवे
अमरे अब सिद्धन को जपनो । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १८-२२ (द्वितीय संस्करण) २. वही प० २१
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