SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 465
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्री देसाई ने इस रचना का कर्ता भूल से शुभविजय को बताया था, बाद में सुधार दिया गया। ज्ञाताधर्म ओगणीस अध्ययन सं० १६७३ आषाढ़ बदी ४ रविवार छठियाडा में लिखी रचना है । इसका रचनाकाल कवि ने इन पंक्तियों में बताया है संवत सोल त्रिहुंतरि संवत्सरे, आदितवारे आसाढ़ मासे, शुभविजय शिष्य लालविजय अणि परि कहे भणे गुणे । 'घी संज्झाय' प्रकाशित हो चुकी है। नंदनमणियार रास और घी संज्झाय का उद्धरण नहीं प्राप्त हो सका। विचार संज्झाय ५ कड़ी की छोटी रचना है । इसके आदि और अन्त की पंक्तियां इस प्रकार हैं आदि-प्रथम धरुं सहुगुरु नाम, जिम मनवंछि जे काम । अन्त-शुभविजय सीस लालविजय कहई, सुयगडांग वृत्ति थी लहई । सुदर्शन संज्झाय (४२ कड़ी) सं० १६७६ मागसर की प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखिये श्री गुरुपद पंकज नमी हुँ मांगु वचन विलास, सुदर्शन शियल बखाणीइ, हुछू तुम्ह पाये दास । रचनाकाल-संवत सोल सितोतरे, मागसिर कड़ी मझारि, ___ श्री पार्श्वनाथ पसाउलउ, शीले काम की उदार । भरतबाहुबल संज्झाय (३१ कड़ी) इसमें भी उपरोक्त गुरुपरंपरा दी गई है। कयवनाऋषि संज्झाय (१४ कड़ी) कयवन्ना को दान के प्रभाव से मुक्ति मिली थी उसी का दृष्टान्त इसमें दिया गया है। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं ओ हवे विर आव्या, साते स्त्री जूओ साथे, दीक्षा लीधी तिहां साचा श्री गुरु हाथे। लट काली तिणे भुगत न पामी, ते तो दान प्रभावे, उतमना गण लेइ देइ को संज्झाय सुभ भावे ।' १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४८७-८९, और भाग १ पृ० ५९३-९४ तथा भाग ३ पृ० ९६९-७० और भाग ३ पृ० १०८६-८७ (प्रथम संस्करण) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy