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लालविजय
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पहिल कीआ अरु जनपुरी, नइ हिव धंधाणा नाम, तिहाँ जैन प्रतिमा सिवतणी, मे प्रगटी हो जिहांकणि अभिराम ।'
देवकुमार चौपइ (अदत्तादान विषये) सं० १६७२ श्रावण शुक्ल ५,. को अलवर में लिखी गई। 'मौन एकादशी स्तवन' एकादशी व्रत के माहात्म्य पर रचित एक स्तवन है और बीसी में जिन भगवन्तों की स्तुति है। सभी रचनाओं का विवरण-उद्धरण स्थानाभाव के कारण दे पाना संभव नहीं है। रूपसेन चतुष्पदी या चौपाई विस्तृत रचना है। इन रचनाओं की सूची और कुछ रचनाओं के नमूने देखकर यह सहज ही अनुमान होता है कि लालचन्द अच्छे कवि थे।
लालविजय -- तपागच्छीय कल्याण विजय के शिष्य शुभ विजय आपके गुरु थे। शुभविजय (हीरविजयसूरि शिष्य) तर्क भाषावातिक, काव्य कल्पलतावृत्ति मकरंद, स्याद्वाद्भाषासूत्रवृत्ति, सेन प्रश्ननो संग्रह आदि ग्रन्थों के रचयिता कहे गये हैं। लालविजय के गुरु शायद यही शुभविजय रहे हों। लालविजय ने भी प्रभूत साहित्य रचा है, जिसमें से बहुत रचनायें प्रकाशित भी हो चुकी हैं। आपकी निम्न रचनाओं के विवरण उपलब्ध हैं- 'महावीर स्वामी न २७ भव स्तव', ज्ञाताधर्म ओगणीस अध्ययन संज्झाय, नंदनमणियार रास, घी संज्झाय, द्वादसमास आदि। इनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है।
महावीर २७ भव स्तवन' (६ ढाल) सं० १६६२ विजयादशमी, आद्रियाणां में लिखी गई। यह जैन काव्यप्रकाश भाग १-२ में प्रकाशित है। इसमें कवि ने अपनी गुरु परंपरा इस प्रकार बताई है
श्री वीरपाट परंपरागत, श्री आणंदविमल सूरीसरो, श्री विजयदान सूरि तास पाटे, श्री विजयदेवसूरि हितधरो।
कल्याणविजय उवझाय पंडित, शुभविजय शिष्य जयकरो। रचनाकाल
संवत सोल बासठे तो भ० विजयदशमी उदार तो, लालविजये भगति कहयुतो भ०, वीर जिन भवजल तारतो।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १७४-१७६ (द्वितीय संस्करण) २. वही भाग ३ पृ० १८-१९ (द्वितीय संस्करण)
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