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________________ ४४१ लइआ ऋषि शिष्य रास, लाभोदय - ये खरतरगच्छीय भुवनकीर्ति के शिष्य थे । कयवन्ना संखेश्वरस्तवन सं० १६७५, नेमिराजुल बारहमासा सं० १६८९, श्रीमंधरस्तवन आपकी प्राप्त रचनायें हैं । कयवन्नारास की एक अपूर्ण प्रति पंचायती भंडार जयपुर में है । उसमें छठें खण्ड को नवीं ढाल तक का अंश ही है, इससे लगता हैं कि रचना काफी विस्तृत रही होगी । इन्होंने संस्कृत में 'आणंदसार संग्रह' नामक ग्रंथ भी लिखा है । नेमिराजीमती बारहमासा १५ कड़ी की छोटी किन्तु भावपूर्ण कृति है जो सं० १६८९ आसो शुक्ल १५ को लिखी गई थी। इसके आदि और अंत की पंक्तियाँ उद्धृत की जा रही हैं आदि सखी री सांभलि हे तूं वाणी, इम बोले राजुल राणी । मजी मुझ जीवन प्राणी, तिण तोडी प्रीति पुराणी हो लाल । नेमजी नेमजी करती, नेमजी ध्यान धरती हो लाल । सखीरी संवत सोल सौ निव्यासी, आसू पूनिम उजासी भगतां गुणतां सुख खासी, लाभोदय लील बिलासी हो लाल । नेमजी नेमजी करती ।' अंत यह कृति श्री देसाई के निजी संग्रह में थी । संखेश्वर पार्श्व स्तवन (१७ कड़ी) सं० १६९५ मागसर वदी ९ को लिखा गया । श्री देसाई ने उसका रचनाकाल सं० १६७५ लिखा था किन्तु प्रति में स्पष्ट 'सोल पचाणुओ' लिखा है, अतः नवीन संस्करण में रचनाकाल सुधार कर सं० १६९५ कर दिया गया है जो उचित है । आपकी विस्तृत रचना कयवन्ना रास की प्रति खंडित होने से उसका उद्धरण नहीं प्राप्त होता है । लइम्रा ऋषि शिष्य - लाइआ ऋषि के किसी अज्ञात शिष्य ने संवत १६४० से पूर्व 'महाबलरास' लिखा । लाइआ ऋषि हीरविजयसूरि के समकालीन कर्ण ऋषि के शिष्य जगमल के शिष्य थे । सूरीश्वर अने सम्राट में इनका नाम लहुआ बताया गया है किन्तु १. अगरचन्द नाहटा - परंपरा पृ० ८५ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २७९ द्वितीय संस्करण) ३. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५३४, भाग ३ पृ० १०२८ ( प्रथम संस्करण ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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