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________________ ललितप्रभसूरि ४३९ इसमें अगदत्त मुनि के चरित्र के माध्यम से साधुचर्या का आदर्श प्रस्तुत किया गया है । भाषा सरस मरुगुर्जर है । ये संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी और गुजराती भाषाओं के जानकार, उत्तम साधु एवं साहित्यकार थे । ललितप्रभसूरि-- पूर्णिमागच्छीय भुवनप्रभ > कमलप्रभ> पुण्यप्रभ के शिष्य विद्याप्रभ आपके गुरु थे । आप पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा में विद्याभ के पट्टधर थे । आपका प्रतिमालेख सं० १६५४ का प्राप्त है जिसमें लिखा है सं० १६५४ वर्षे माघ वदि १२वाँ श्रीमाल ज्ञातीय दोसी वीरपाल भार्या पुजी सुत दोषी रहिआकेन श्री सम्भवTrafia कारापितं श्री पूर्णिमापच्छे प्रधानशाखायां श्री विद्याप्रभसूरिपट्ट श्रीललितप्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।" आपकी रचना 'पाटण चैत्यपरिपाटी' (२३ ढाल) सं० १६४८ आसो वदी ४, रविवार को लिखी गई थी। इसके आदि की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं- सयल जिणेसर प्रणमी पाय, सरसति सहगुरु हियडइ ध्याइ, पाटण चैत्य परिवाडी कहुं जिनबिंब नमता पुण्यज लहुं । रचना में भी उपरोक्त गुरुपरम्परा दी गई है। रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है- संवत रे सोलवली अठतालउइ रे, आसो मासि विचारी, वहुल पखि रे (२) चऊथि तिथि वली जाणीइ रे । आदित रे वार अनोपम ते कहिउ रे, तिणिदिन आदर आणि, भावइरे भावइ रे जिन ना गुण वखाणीई रे । अन्त में कलश की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं इमि चैत्य प्रवाड़ी मनि रुहाडी रची अति सोहामणी । श्री पास पसाई चित्तिध्याई अठाहल्ल पाटण तेहतणी ।। श्री सद्गुरु पामी धरउ धामी स्तवन रूपी सुहाकरो । संखेसरु श्री पास स्वामी सयल भुवनइ जयकरो ॥ २ आपकी दूसरी रचना 'चंदराजानोरास' ४ खंडों की विस्तृत रचना है, यह सं० १६५५ माह सुदी १०, गुरुवार को अणहिलपाटण में रची १. जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० २५१ (द्वितीय संस्करण ) २. वही, भाग २, पृ० २५२ (द्वितीय संस्करण ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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