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मरु-गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुरुपरंपरा पूर्वरचनानुसार इसमें भी दी गई है। अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
तिहां ताई उत्तमराय नो जानो उत्तम रास रसाल, भणे गुणे निसुणे जे भावे, तिहां घर मंगल माल । तपगछ मंडण संजमहर्ष सुशिष्य श्री गुणहर्ष सुसीस, लब्धिविजय कहे रास रसालो, प्रतपों जाँ निसदीस।'
अजापुत्र रास-(७ खंड, २९ ढाल, १४२० कड़ी, सं० १७०३ आसो सुद १० शुक्रवार) आदि वंदु श्री जिनवर चरण कमल उल्हास,
जे प्रणमते पामीइ शिवसुख बारेमास । जेहथी जग जस पामी) सरे मनवछित काम,
श्री गुणहर्ष गुरु जीतणां जंगजयवंतु नाम । रचनाकाल--संवत सत्तर त्रन आसु सुदमा दसमी शुक्रे सही,
श्री अजापुत्र कथा सकोमल रास बंधे अम कही। इसमें भी विजयदान से लेकर गुणहर्ष तक की गुरुपरंपरा दी गई है। __ मौन एकादशी स्तवन, सौभाग्य पंचमी अथवा ज्ञान पंचमी स्तव, पंचकल्याणकाभिधजिनस्तवादि आपके स्तवन साहित्य के ग्रन्थ हैं। पंचकल्याणकाभिध जिन स्तवन का आदि और अंत नमूने के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। आदि चोबीसइजिणवर नमी, निअ गुरु चरण नमेवि,
कल्याणक तिथि जिन तणी, सुणि भवियण संषेवि । अन्त- श्री विजयदेव सुरीद सगुरु सगुण,
श्री गुणहर्ष वरविवुध सीसो, पंच कल्याणक आविध तवन जिन तणु लवधि पभणइ प्रबल जगि । २
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २८४-२८७ तक (द्वितीय संस्करण)
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