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लब्धिविजय
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रचनायें भी लिखी हैं जिनका संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है। प्रथम रचना 'दानशील कथारास' का आदि इस प्रकार है--
श्री सरसति तूं सारदा, भगति मुगति दातार,
जैनी जगदंबा जगे, तुझ थी मति विस्तार । गुरुपरम्परा के अन्तर्गत लेखक ने हीरविजयसूरि से लेकर विजयसेन, विजयदेव, विजयदान, अमीपाल और गुणहर्ष तक का सादरस्मरण किया है। कवि उसके बाद कहता है
तेहनो सीस सवि कवि मुकुट कवि चरण, शरण अनुकरण मति मनिआणी । लबधिविजयाभिधो परसु गुणवणमधो कहति सुणिमात शिशुवचन वाणी। च्यार खंडे अखंडे अलिय वचन मे भाषिऊ,
रास लवलेस करता, साधयो कवि बड़ा सयल गुणना घणा,
कहुं बहु प्रवचन थकी अ डरती। रचनाकाल -सोल सत बाणुइं बरस विक्रम थकी,
भाद्रवे मासि सुचि छठि दिवसे, रास लिखियो रसे सुणत सुख होइसी,
जेह जण जोइसिमन्न हरसि ।' 'उत्तमकुमार रास' (४ खण्ड, ४४ ढाल, १५४० कड़ी, सं० १७०१ कार्तिक शुक्ल ११ गुरुवार) का आदि
श्री गुणहरष (गुरु) तणो, पामी पुण्य प्रभाव, विषम विघन जल तारवा, जे बड़ अविहड नाव । वीणा पुस्तक धारणी, भगवति भारति देवि, कवित करुं संखेप थी, हियडे तुझ समरेव । श्री उत्तमराय तणी में कथा कही लवलेस,
जीरण शास्त्र तणे अनुसारे ढालबंध सुविशेष । रचनाकाल और अंत--
संवत सतरशतक ऊपरि वरसि कातिमास,
उज्ज्वल अग्यारसे गुरुवासरे रच्यो रास उल्लास । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २८१-२८७ (द्वितीय संस्करण)
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