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________________ ४:३४ मरु-गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का वृहद् इतिहास लब्धिरत्न या लब्धिराज---ये खरतरगच्छ की क्षेम शाखा के धर्ममेरु शिष्य थे ।' नारद चौपई (सं० १६७६, नोहर, पद्य संख्या ११३) और शीलफाग अथवा शीलविषये कृष्णरुक्मिणी चौपई (सं० १६७६ फाल्गुन, नवहर) आपकी प्रमुख उपलब्ध रचनायें हैं। श्री मो० द० देसाई ने शीलफाग के कर्ता का नाम लब्धिराज लिखा है। लेकिन कवि ने रचना के अन्त में अपना नाम लब्धिरत्न ही दिया है । इसलिए लेखक का नाम लब्धिरत्न ही है; कथन के प्रमाणस्वरूप निम्न पंक्ति प्रस्तुत है वाचक लबधिरतन गणि इम कहइ मुनि सुव्रत सुप्रसादि, से संबंध सुपरि करइ वांचता दुरि टलइ विषवाद । रचना का प्रारम्भ सरस वचन मुझ आपिज्यो, सारद करि सुपसाउ, सील तणा गुण वर्णवं मनिधरि अधिकउ भाउ । गुरुपरंपरा-खेमकीरति साखइ अतिभलउ श्री धर्मसुन्दर गुरुराय, धर्ममेरु वाणारीस गुणनिलउ तासु सीस मनि भाय । रचनाकाल –संवत सोलहसय छहोतरइ, फागुन मास उदार, नवहर नगरइ से संबंध रच्यउ, गुणे करी सुविचार । अंत - सील तणा गुण सुवधइ गावतां रिद्धि वृद्धि आणंद, अविचल कमला ले लहइ वरइ पामइ परमाणंद ।। नारद चौपई का उद्धरण उपलब्ध नहीं हो पाया है। लब्धिविजय-आप तपागच्छीय विजयदेवसूरि > संयमहर्ष > गणहर्ष के शिष्य थे। आपने 'दानशील तप भावना ओ हरेक अधिकार पर दृष्टांत कथा रास' ४ खंडों, ४९ ढालों, १२७४ कड़ियों में सं० १६९१ भाद्र शुक्ल ६ को पूर्ण किया। इसके अतिरिक्त 'उत्तमकुमार रास' अजापुत्ररास, मौन एकादशीस्तवन, गुरुयुत्रछत्तीसीस्तवन आदि १. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० ८५ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९७५ (प्रथम संस्करण) ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३७८ (द्वितीय संस्करण) और पृ० १९६ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jaine
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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