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मह - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इस रास में कुछ द्विपदी, कुछ चतुष्पदी और कुछ षट्पदी छंद हैं । ये अलग-अलग रागों और ढालों के तर्ज पर निबद्ध हैं ।
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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में जिनचंद्रसूरि गीतानि के अन्तर्गत २६, २७, २८ और २९ वें गीत भी लब्धिकल्लोल के लिखे संग्रहीत हैं २६-२७ वें 'गीत' 'गहुंली' गुजरी राग में हैं । २७ वें गीत की कुछ पंक्तियाँ देखिये
दुनिया चाहइ द्वौ सुलतान,
इक नरपति इक यतिपति सुन्दर, जाने हइ रहमान । राय राणा भू अरिजन साधी, वरतावो निज आण । बाबर वंश हुमाऊनंदन, अकबर साहि सुजाण ।'
२८ और २९ गहूंली भी गेय और सरल भाषा की रचनायें हैं । रिपुमर्दन भुवनानंदरास (२०८ कड़ी, सं० १६४९ विजयादसमी, गुरुवार, पालनपुर) का आदि इस प्रकार है
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आदि जिणेसर आदि कर संतीसर गुणवंत,
नेम पास सिरिवीर जिण प्रणमी श्री भगवंत ।
इस रास में कवि ने स्पष्ट रूप से अपने आपको कुशलकल्लोल का शिष्य बताया है, यथा
विमलरंग तसु शिष्य सुजाण, सुगुण रमण गुण केसरि खांणि, तसु सुविनय कुशलकल्लोल, सीस सुपरि कहइ लब्धिकल्लोल । रचनाकाल -- संवत सोल गुण पंचासइ जांणि, विजयदसमी गुरुवारि बखाणि । तिणि दिन कीधउ अह ज रास, सांभलता सवि पुहतइ आस ।
कवि संस्कृत और साहित्य शास्त्र का जानकार था। रास के अन्त में नम्रता पूर्वक वह लिखता है -
पामी संघ तणउ आदेश, जाणी सम तणउ लवलेस,
रिपुमर्दन नउ रचीउ रास, भणतां गृणतां लील विलास ।
१. ऐतिहासिक काव्य संग्रह पृ० १२१
२. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २४९ (द्वितीय संस्करण )
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