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ल ब्धिकल्लोल उपाध्याय
४३१ तेषां विनेया वियलादिरंगा मान्या बभूवुर्मुनि सत्तमानं,
श्रीलब्धिकल्लोल गणिस्तदीये, पट्टेऽभवत् वाचक वर्गवर्यः । युगप्रधान जिनचंदसूरि और सम्राट अकबर की भेंट पर आधारित इस ऐतिहासिक रास का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है -
जिनवर जगगुरु मनधरि, गोयम गुरु पणमेसु,
सरस्वती सद्गुरु सानिधइ, श्रीगुरुरास रचेसु ।२ 'जगगुरु' शब्द से ध्वनित होता है कि रास रचना से पूर्व जिनचंद्र को युगप्रधान की पद्वी प्राप्त हो चुकी थी। बीकानेर के राजा रायसिंह के मन्त्री कर्मचंद से अकबर ने जिनचंदसूरि की प्रशंसा सुनी और मानसिंह से सन्देश भेजा गया। सूरि जी खंभात से चलकर अनेक स्थानों-नगरों का विहार करते अपनी साधु मण्डली (जयसोम, कनकसोम, समयसुन्दर आदि) के साथ दरबार में पहुँचे और अकबर को प्रतिबोधित किया
गच्छयति धौ उपदेश, अकबर आगलि, मधुर स्वर वाणी करीए ।
जे नर मारइ जीव ते दुख पुरगति पामइ पातक आचरी ए। अकबर प्रभावित हुआ ‘इम सांभलि गुरुवाणि रंजिउ नरपति श्री गरु ने आदरइए । धण कंचण वर कोणि कापड़ बहधरि, गरु आगइ अकबर धरइ ए, किन्तु गुरु ने कहा 'सुगुरु कहइ' हम क्या करां ए।' इससे अकबर अधिक प्रभावित हुआ और युगप्रधान की पद्वी दी 'युगप्रधान पदवीदिउगुरु, विविध वाजा बाजिया, बहुदान मानइ गुणह गानइ, संघ सवि मन गाजिया। उस समय कर्मचंद्र ने बड़ा उत्सव किया। अकबर ने जीवहत्यारोकने का शाही फरमान निकाला। जिनचंद्र के शिष्य महिमसिंह को सूरिपद के पट्ट पर विराजमान करके उन्हें जिनसिंह सरि नाम दिया गया। इसी अवसर पर जयसोम, रत्ननिधान को वाचक और गुण निधान तथा समयसुन्दर को उपाध्याय की पद्वी भी दी गई। रास में वर्णित घटनाओं का उल्लेख कवि ने श्रुति के आधार पर किया है, इससे प्रकट होता है कि ये घटनायें रचना से कुछ काल पूर्व घटित हो चुकी थीं, इन्हीं सब आधारों पर रचनाकाल सं० १६५८ स्वीकार किया गया है। १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २४७ (द्वितीय संस्करण) २. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० ५८-५९
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