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________________ ४३० आदि अन्त मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तारक ऋषभ जिनेसर तु मिल्यो, प्रत्यक्षपोत समान हो, तारक जे तुझनि अवलंबिया, तेणे लहुं उत्तम स्थान हो । वीर धीर शासनपति सांचो, गांता कोडि कल्याण, कीर्ति विमल प्रभु परम सोभागी लक्ष्मी वाणी प्रमाण रे ।' " लब्धिकल्लोल उपाध्याय - ये खरतरगच्छ की - कीर्तिरत्नशाखा के विद्वान् विमलरंग के शिष्य थे । कीर्तिरत्न की परंपरा में हर्ष - विशाल > हर्षधर्म> साधुमन्दिर > बिमलरङ्ग क्रमश: पट्टासीन हुए थे । श्री मो० द० देसाई लब्धिकल्लोल को विमलरंग के शिष्य कुशलकल्लोल का शिष्य बताते हैं । लेकिन प्रसिद्ध रचना 'उत्तराध्ययन "वृत्ति' के लेखक ने गुरुपरंपरा के अन्तर्गत विमल रंग के पश्चात् लब्धिकल्लोल का ही नाम दिया है । सम्भवतः इसी कारण श्री अगरचंद नाहटा इन्हें विमलरङ्ग का ही शिष्य मानते हैं । आपकी प्रमुख रचनाओं का संग्रह श्री नाहटाजी के पास हैं, जिनमें 'रिपुमर्दन भुवनानन्द चोपई' सं० १६४९, जिनचंदसूरिरास सं० १६५८, कृतकर्म रास सं० १६६५, तीर्थचेत्यपरिपाटी, कीर्तिरत्नसूरि गीत, आबूयात्रास्तवन, जिनचंदसूरि गीत और कई अन्य स्तवन एवं गीतादि हैं । श्रीजिनचंदसूरि अकबर प्रतिबोधरास' (१३६ कड़ी सं० १६५८ ज्येष्ठ वदी १३ (अहमदाबाद ) ऐतिहासिक महत्व की रचना है । यह ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में ( पृ० ५९ से ७८ तक ) विमलरंग के शिष्य कवियण के नाम से छपी है । इसमें जो रचनाकाल बताया है 'वसु युग रस शशिवच्छरइ' उससे सं० १६४८ निकलता है किन्तु जिनचंद्रसूरि को सं० १६४८ में युगप्रधान पद मिला था अतः इस रास का रचनाकाल सं० १६५८ माना गया है । अन्त में कवि कहता है- पढ़इ सुणइ गुरुगुण रसी ए, पूजइतास जगीस, कर जोड़ि कवियण कहइ रंगविमलमुनि सीस । कवियण लब्धिकल्लोल हो सकते हैं क्योंकि जैसा ऊपर कहा गया है - उत्तराध्ययन वृत्ति में विमलरङ्ग के शिष्य लब्धिकल्लोल का नाम है । यथा १ जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५९६ (प्रथम संस्करण ) २ . वही, भाग २ पृ० २४७ (द्वितीय संस्करण) ३. अगरचन्द नाहटा - परंपरा पृ० ८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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