SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २.६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास संभालते हैं किन्तु अन्ततः दीक्षा ग्रहण कर संयम पालन करते और सिद्ध-मुक्त हो जाते हैं। ये केवलज्ञानी सदैव अनासक्त और सर्वत्र वीतराग रहते हैं। वि० १७वीं शताब्दी के हिन्दी जैन साहित्य में भक्ति काव्य की बानगी देने के लिए उपरोक्त कुछ नमूने पर्याप्त होंगे जिनसे वैष्णव भक्ति और जैन भक्ति के वास्तविक स्वरूप और पारस्परिक सम्बन्ध का कुछ अनुमान किया जा सकेगा। छंद -वैसे तो इन कवियों ने वणिक एवं मात्रिक छंदों का प्रयोग किया है किन्तु संस्कृत से अनूदित रचनाओं में प्रायः वणिक छन्दों का और मौलिक कृतियों में अधिकतर मात्रिक छंदों का प्रयोग किया गया है। मात्रिक छंदों में दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि प्रचलित छंदों का ही प्रयोग अधिक किया गया है। किन्हीं-किन्हीं रचनाओं में आद्यान्त एक ही छन्द का प्रयोग हुआ है। जैसे दूहा छन्द का 'तत्वसारदहा या परमार्थीदोहाशतक' में आद्यान्त प्रयोग मिलता है। संभवतः चौपाई का प्रयोग इस प्रकार सर्वाधिक रचनाओं में किया गया है। 'चौपाई' छंद के आधार पर काव्य की स्वतन्त्र विधा का नाम ही 'चौपई' पड़ गया है जैसे—चिहंगति चौपइ, देवराजवच्छराज चौपइ और धर्मबुद्धिचौपइ आदि । ब्रजभाषा के प्रिय छंद कवित्त का भी प्रयोग खब हआ है। बनारसीदास, भैया भगवतीदास आदि की रचनाओं से इसके उदाहरण दिये जा सकते हैं । इसी प्रकार सवैया, छप्पय, कुण्डलिया के भी उदाहरण ढूढ़े जा सकते हैं किन्तु उनको उद्धत करके कलेवर बढ़ाना लक्ष्य नहीं है। भक्तिकाल का सर्वाधिक प्रसिद्ध छन्द 'पद' आनन्दघन, बनारसीदास आदि महाकवियों की रचनाओं में प्रचुरता से प्रयुक्त हुआ है। लोकगीतों के कई रूप जैसेफागु, चर्चरी आदि का भी प्रयोग किया गया है। शास्त्रीय संगीत की भिन्न-भिन्न राग-रागिनियों जैसे धन्यासी, विलावल, काफी आदि भी जैन रचनाकारों में विशेष प्रचलित राग रहे हैं । अरिल्ल, हरिगीतिका सोरठा के अतिरिक्त कुछ नये छन्द जैसे आभानक, रोडक, करिखा और बेसरि आदि का प्रयोग इन कवियों की मौलिक सूझ का परिणाम है। बनारसीदास का एक छन्द 'पद्मावती देखिये ज्यों नीरोग पुरुष के सनमुख पुरकामिनि कटाक्ष कर ऊठी। ज्यों धनत्याग रहित प्रभु सेवन, ऊसर में बरखा जिम छूठी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy